राकेश अचल
कांग्रेस की ग्रह-दशा खराब है या कुछ और लेकिन फिलहाल कांग्रेस सन्निपात की स्थिति में है। हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों में कांग्रेस की अप्रत्याशित पराजय और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने के बाद से जहाँ भाजपा का उत्साह द्विगुणित हुआ है वहीं कांग्रेस को लगता है जैसे काठ मार गया है। सवाल ये है कि क्या कांग्रेस आने वाले दिनों में अपने आपको आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार कर पाएगी या नहीं ?
भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों में तीन राज्यों में सत्ता में लौटना एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के फैसले पर मुहर लगने के बाद एक और उपलब्धि हासिल हुई है। मुमकिन है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम फटाफट निबटाकर लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा के चुनाव करा दे। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी अप्रत्याशित नहीं था ,क्योंकि इस मुद्दे को लेकर प्रभावित पक्ष कोई बड़ा प्रतिरोध खड़ा नहीं कर सका था और देश की जनभावना भी इस मामले में सरकार के साथ थी।
सत्तारूढ़ भाजपा के लिए आगामी आम चुनाव बहुत कठिन नहीं है । जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने अपने हिसाब से विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ाने का इंतजाम पहले से कर लिया है। नए परिसीमन का लाभ स्वाभाविक रूप से भाजपा को मिलेगा। जब से राज्य में धारा 370 हटी है तभी से राज्य के तमाम राजनीतिक दलों में बिखराव देखने में आ रहा है ,इसका लाभ भी भाजपा उठाएगी ही। भाजपा के लिए नया साल अनुकूल साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ अपनी पराजय से आहत कांग्रेस का नेतृत्व अभी तक रंजोगम से बाहर नहीं निकल पाया है । कांग्रेस ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से माहौल बनाया था उससे लग रहा था कि भाजपा चारों खाने चित हो जाएगी लेकिन हुआ एकदम उलटा। जो दशा भाजपा की होना थी ,वो दशा कांग्रेस की हो गयी। कांग्रेस की अप्रत्याशित पराजय की वजह से कांग्रेस तेलंगाना में जीत का जश्न भी ढंग से नहीं मना सकी। कांग्रेस की पराजय ने विपक्षी गठबंधन को भी कमजोर किया है। कांग्रेस भी अब अपने सहयोगी दलों से ‘ बार्गेनिंग ‘ करने की स्थिति में नजर नहीं आ रही। अब कांग्रेस को सहयोगी दलों के सामने विनम्रता से पेश आना होगा।
बदले हुए हालात में भी अगले साल होने वाले आम चुनाव में केवल कांग्रेस ही है जो भाजपा का मुकाबला कर सकती है भले ही इस समय कांग्रेस सन्निपात में है। कांग्रेस के सामने असल संकट संगठन का है । कांग्रेस विचारधारा के रूप में देश भर में मौजूद है लेकिन संगठन के रूप में उसकी दशा भाजपा के मुकाबले बहुत जर्जर है। कांग्रेस की आर्थिक दशा भी अब पहले जैसी नहीं रही। कांग्रेस के पास राज्यों में प्रभावी नेतृत्व का भी संकट है। अकेले गांधी परिवार अब कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा सकता ,हालांकि एक हकीकत यह भी है कि कांग्रेस के पास राहुल गांधी के अलावा कोई ऐसा दूसरा चेहरा नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे की तरह चिर-परिचित और लोकप्रिय हो।
नए साल में क्षेत्रीय दलों की दशा में भी अंतर आने वाला है । बसपा ने उत्तर प्रदेश में नयी तैयारी से उतरने के संकेत दिए है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने न केवल अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है बल्कि ये संकेत भी दे दिए हैं कि वो अभी चुनावी राजनीति से बाहर नहीं हुई है। लोकसभा चुनाव में उसकी भूमिका पहले जैसी ही होगी। याद रहे कि बसपा अभी किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं है लेकिन उसके पास विकल्प सीमित हैं। कांग्रेस के अलावा यदि विपक्षी गठबंधन के तमाम सदस्य अपने-अपने राज्य में भाजपा से जूझे तो मुमकिन है कि विपक्ष को कुछ हासिल हो जाये। विपक्ष के पास ये आखिरी मौक़ा है भाजपा को रोकने का । यदि इस चुनाव में भाजपा की बढ़त न रुकी तो फिर आगे भी शायद ही इसे रोका जा सके।
बहरहाल नया साल बहुत कुछ नया लेकर आने वाला है । नए साल में राम जी को नया मंदिर मिल रहा है,जम्मू-कश्मीर की जनता को पूर्ण राज्य मिल रहा है ,देश को एक बार फिर मोदी मैजिक देखने को मिलेगा। मुमकिन है कि इस बीच कांग्रेस भी देश के लिए कुछ नया लेकर सामने आये।(विभूति फीचर्स)-@Nirbhaypathik
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