एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर कोई शास्त्र पढ़ रहा था । आधी रात बीत गई जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया । लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था, पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा । लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई । वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चांद को बाहर रोेक कर रक्खा । इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे-छोटे दीए जला रखे हैं जिसके कारण परमात्मा का चांद बाहर ही खड़ा रह जाता है ।
जबतक वाणी को विश्राम नहीं दोगे तबतक मन शांत नहीं होगा। मन शांत होगा तभी ईश्वर की उपस्थिति महसूस होगी ।.
…. – ओशो”.