Home मुंबई-अन्य एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह मुख्यमंत्री शिंदे ने किया राहत कार्य

एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह मुख्यमंत्री शिंदे ने किया राहत कार्य

by zadmin

एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह मुख्यमंत्री शिंदे ने इरसालवाडी दुर्घटनास्थल पर बचाव और राहत कार्य किया
नवीन कुमार
मुंबई (निर्भय पथिक)। आज की सुबह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के साथ हुई। 19 जुलाई की रात इरसालवाडी के ठाकुर जनजाति के आदिवासियों के लिए एक भयानक रात साबित हुई। आधी रात को जब लोग गहरी नींद में थे तो मानो प्रकृति ने कहर बरपा दिया हो। खालापुर में  इरसालवाडी   की एक बस्ती पर भूस्खलन के बाद कई परिवार मलबे में दब गए।
यह खबर सुनते ही राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सुबह छह बजे ‘वर्षा’ बंगले से निकले। आठ बजे वे घटनास्थल पर पहुंचे। स्थिति की जानकारी ली। घटना दुर्भाग्यपूर्ण थी। उन्होंने तुरंत सरकारी और अर्ध-सरकारी मशीनरी को काम पर लगा दिया। और कुछ ही पलों में मदद के हजारों हाथ उठ गए। राहत कार्य गंभीरता से शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री पीड़ितों से व्यक्तिगत मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दे रहे थे। राहत कार्य में तेजी आई और करीब 11.30 बजे मुख्यमंत्री का काफिला वहां से निकल गया। उपस्थित लोगों को लगा कि मुख्यमंत्री मुंबई लौट आये हैं। लेकिन वे ऐसे मुख्यमंत्री नहीं हैं जो इतनी आसानी से वापस चले जाते। ‘एक्टिविस्ट’ की तरह वे इस बड़ी घटना में लोगों के बीच मदद के लिए तैयार थे। रायगढ़ के पुलिस अधीक्षक सोमनाथ घारगे के साथ वे  फिर रेनकोट पहनकर घटनास्थल पर आये। घटनास्थल पर मौजूद लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगी। क्योंकि मुख्यमंत्री के पास अपना काफिला नहीं था और मुख्यमंत्री अचानक घटनास्थल की ओर चल पड़े। वे सीधे इरशालवाड़ी पहुंचे।
इस वाडी तक पहुंचने के लिए पगडंडी का रास्ता आसान नहीं था। पत्थर की धाराओं से आता वर्षा जल, सामने एक भव्य पर्वतमाला। पगडंडी के नीचे 30 डिग्री से अधिक ढलान। ऐसे में भी मुख्यमंत्री सिर्फ दुर्घटना पीड़ितों की मदद के लिए पैदल चल रहे थे। आसमान से भारी बारिश हो रही थी।
घने झाड़ियों के बीच से रास्ता बनाते हुए वे हर पंद्रह से बीस मिनट में एक पल के लिए रुकते थे। मुख्यमंत्री दरअसल तबाह हुई बस्ती में आये और बचाव कार्य का ‘नेतृत्व’ किया। आसमान से गिरती मूसलाधार बारिश, नीचे फिसलन भरी गाद भरी चट्टानों का रास्ता, अगर पैर फिसल गए तो क्या होगा। यह जानते हुए भी यह ‘एक्टिविस्ट’ मुख्यमंत्री बिना किसी हिचकिचाहट के सभी आम लोगों के दुख-दर्द में शामिल होने पहुंच गए। डेढ़ घंटे तक पैदल चलने के बाद मुख्यमंत्री पहुंचे और असल में रेस्क्यू ऑपरेशन देखा। परिचारकों को राहत मिली और वे नीचे उतरने लगे।
उतना ही कठिन है दुर्घटनास्थल पर पहुंचना और उस जगह से नीचे आना भी एक बड़ी कसरत थी। हालांकि, शाम 4.05 बजे मुख्यमंत्री अपने सभी सहयोगियों के साथ नीचे आये।
रेनकोट पहने ‘एक्टिविस्ट चीफ मिनिस्टर’ को वहां मौजूद सभी लोगों ने देखा और हर कोई उनके असंभव लगने वाले कारनामे पर चर्चा करने लगा। इस मौके पर विंदा करंदीकर की कविता ‘देने वाला देना चाहिए, लेने वाला लेना चाहिए’ याद की गई। उन्होंने अपने भाषण में खुद को आम जनता का कार्यकर्ता बताते हुए आज यह बात सबके सामने साबित कर दी। आज महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एक ‘कार्यकर्ता’ मुख्यमंत्री है, ‘योद्धा’ है, प्रबंधन में ‘विशेषज्ञ’ है, प्रशासन में कुशल नेता है और ‘मानवीय संवेदनाओं’ को सुरक्षित रखने वाले ‘व्यक्ति’ भी हैं। वे हमेशा खुद को आम कार्यकर्ता कहते थे, आज एक बार फिर उनका यकीन सबके सामने आ गया।
मुख्यमंत्री के इस साहस की थोड़ी सराहना की जानी चाहिए! प्राकृतिक आपदा में खोए हुए व्यक्ति को वापस नहीं लाया जा सकता, लेकिन सरकार उस व्यक्ति की मदद के लिए हमेशा मौजूद रहती है। मुख्यमंत्री ने पूरे दिन मौके पर रहकर यह बात पूरे प्रदेश के सामने दिखा दी है।

You may also like

Leave a Comment