Home समसमायिकीप्रसंगवश सत्ता के लालच में साख गंवाती भाजपा

सत्ता के लालच में साख गंवाती भाजपा

by zadmin

सत्ता के लालच में साख गंवाती भाजपा

रमेश सर्राफ धमोरा

कभी चाल, चरित्र, चेहरे की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब पूरी तरह से बदल गई है। सत्ता के लालच ने भाजपा का चरित्र ही बदल कर रख दिया है। देश में कम्युनिस्ट पार्टियों के बाद अनुशासन के मामले में सख्त मानी जाने वाली भाजपा का अनुशासन अब तार-तार हो गया है। भाजपा में वफादारी की बात करना अब बेमानी हो गया है। सत्ता के लालच में पार्टी के नेता कब कौन सा कदम उठा ले किसी को पता नहीं है। 2014 के बाद तो भाजपा पूरी तरह बदल गयी है। इस समय की भाजपा सत्ता की इतनी भूखी हो गई है कि सत्ता मिलते देख वह अपने जन्मजात दुश्मनों को भी गले लगाने से परहेज नहीं कर रही है।

जब 1980 में जनता पार्टी से अलग होकर भाजपा का गठन किया गया था। उस समय राजनीतिक रूप से तो भाजपा कमजोर थी मगर चारित्रिक रूप से बहुत मजबूत थी। भाजपा के अनुशासन व संगठन को लेकर सभी राजनीतिक दलों में चर्चाएं होती थी। अपने वफादार कार्यकर्ताओं के बल पर भाजपा हर समय संघर्ष करने को तैयार रहती थी। पार्टी नेताओं के एक इशारे पर पार्टी कैडर मरने मारने पर उतारू हो जाता था। पार्टी के कार्यकर्ता भूखे रहकर महीनों तक चुनाव में पार्टी के लिए मेहनत करते थे।

मगर अब नजारा पूरी तरह से बदल गया है। आज भाजपा का कार्यकर्ता सुविधा भोगी हो गया है। सबको सत्ता का लालच आ गया है। पार्टी का हर कार्यकर्ता पांच सितारा जिंदगी में जीना चाहता है। भाजपा का छूटभैया नेता भी आज बड़ी-बड़ी लग्जरी गाड़ियों में घूम रहा है। एक समय पाई पाई के लिए मोहताज रहने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं के पास अचानक ही लग्जरी लाइफस्टाइल बिताने के लिए इतना धन कहां से आया इस बात से पार्टी के बड़े नेताओं को कोई मतलब नहीं रहता है। सत्ता पाने की होड़ में पार्टी आलाकमान उस बात से भी आंख मूंद लेती है जिससे पार्टी की छवि खराब हो रही है।

पार्टी की स्थापना करने के बाद अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख, विजय राजे सिंधिया, भैरोंसिंह शेखावत, कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर सिंह भंडारी, कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, शांता कुमार, सुंदरलाल पटवा, श्यामाचरण सकलेचा, मदन लाल खुराना, जगदीश प्रसाद माथुर, विजय कुमार मल्होत्रा, जाना कृष्णमूर्ति, एम वेंकैया नायडू, सूरजभान जैसे बहुत से नेताओं ने पार्टी को बनाने में अपना सब कुछ खफा दिया था। पार्टी में इन वरिष्ठ नेताओं का जब तक दबदबा रहा तब तक पार्टी सत्ता पाने की दौड़ में शामिल नहीं हुई थी।

अटल, आडवाणी युग में भाजपा ने अपने को जमीनी स्तर पर बहुत मजबूत किया था। जिसका ही नतीजा है कि आज भाजपा देश में शासन कर रही है। एक समय था जब अटल बिहारी बाजपेई ने सिद्धांतों से समझौता नहीं कर के प्रधानमंत्री का पद गंवा दिया था। उस दौर में पार्टी के लिए सत्ता से बड़े सिद्धांत होते थे। मगर अब सब कुछ बदल गया है। आज के समय में सत्ता हासिल करना ही पार्टी का मुख्य उद्देश्य बन गया है।

2014 में जब नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने और अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने उसके बाद से पार्टी में पुराने नेताओं, पुराने कार्यकर्ताओं को धीरे-धीरे पीछे धकेला जाने लगा। उनके स्थान पर फाइव स्टार कल्चर के नए-नए लोगों को आगे बढ़ाए जाने जाने लगा। भाजपा के बारे में माना जाता था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का पार्टी पर पूरा नियंत्रण रहता है। संघ की इजाजत के बिना पार्टी में पत्ता भी नहीं हिल सकता है। मगर मौजूदा परिस्थितियों में लगता है कि संघ का पार्टी पर से नियंत्रण समाप्त हो गया है। संघ के पदाधिकारी भी आज मौन रहकर पार्टी के सत्ता लोलुप स्वरूप को देख रहे हैं। पार्टी की नीतियों में हस्तक्षेप करने की संघ में भी हिम्मत नहीं रह गई है। इसीलिए भाजपा के बड़े नेता मन मुताबिक फैसले लेकर काम कर रहे हैं।

आज भाजपा में दूसरे दलों से आए नेताओं का बोलबाला हो रहा है। पार्टी के शासन वाले बहुत से राज्यों में दूसरे दलों से आए नेताओं को मुख्यमंत्री, मंत्री बनाया गया है। ऐसे ही संगठन में दूसरी पार्टी से आए नेता प्रमुख पदों पर बैठे हुए हैं। हाल ही में पंजाब भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए सुनील जाखड़ तो कुछ माह पूर्व ही भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस पार्टी में तवज्जो नहीं मिलने के चलते सुनील जाखड़ भाजपा में आ गए थे। पूर्व में वह पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। इसी तरह असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा, त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू, मणिपुर के मुख्यमंत्री एन वीरेंन सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होकर राज कर रहे हैं। उन प्रदेशों में जो पार्टी कैडर के कार्यकर्ता थे उनका आज पता ठिकाना भी नहीं है कि वो लोग कहां गुमनामी में खो गए हैं।

भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने जब 2015 में जम्मू कश्मीर में जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के मुफ्ती मोहम्मद सईद फिर उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बना ली थी उसी दिन से भाजपा के सभी सिद्धांत समाप्त हो गए थे। सत्ता के लिए मुफ्ती मोहम्मद सईद व महबूबा मुफ्ती जैसे भारत विरोधी विचारधारा के कट्टरपंथी नेताओं के साथ सरकार बनाना भाजपा द्वारा अपने सभी सिद्धांतों को तिलांजलि देने के समान था।

इसके साथ ही भाजपा जहां चुनाव नहीं जीत सकती वहां जोड़-तोड़ कर सरकार बनाना शुरू कर दिया। अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर इसके पहले शिकार हुए। उसके बाद 2018 में कर्नाटक व मध्य प्रदेश में विधानसभा का चुनाव हार जाने के बाद भाजपा ने वहां दलबदल करवाकर अपनी सरकार बना ली थी। उसी का नतीजा है कि पिछले दिनो संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक में करारी हार झेलनी पड़ी थी। इसी तरह महाराष्ट्र में भी भाजपा ने पहले शिवसेना में और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में तोड़फोड़ करवा कर अपनी सरकार बनायी है।

हालांकि भाजपा के नेताओं को भी पता लग गया है कि जोड़-तोड़ कर बनाई सरकार को मतदाता स्वीकार नहीं करते हैं। मतदाताओं को जब भी कर्नाटक की तरह मौका मिलता है वह बुरी तरह हरवा देते हैं। इसी साल के अंत में मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं। मौजूदा परिस्थितियों से वहां भाजपा कि स्थिति सही नहीं लग रही है। इसी तरह महाराष्ट्र में भी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में भाजपा सहित कई दलों की सरकार चल रही है। मगर सरकार में शामिल दलों कि आपसी खींचतान के चलते महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में बहुत से पद खाली पड़े हैं।

भाजपा आलाकमान ने यदि अपनी नीति नहीं बदली तो आने वाले समय में पार्टी के वफादार लोग पार्टी से दूर होते चले जाएंगे। फिर भाजपा में सिर्फ दलबदलू व मौकापरस्त लोगों का जमावड़ा रह जाएगा। जिनके बल पर भाजपा लंबे समय तक नहीं चल पाएगी।

आलेखः-

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।

You may also like

Leave a Comment