राष्ट्रवादी कांग्रेस में बिखराव से एडवांटेज भाजपा
अश्विनीकुमार मिश्र
महाराष्ट्र में हुए ताजा राजनीतिक घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बढ़ता हुआ दिख रहा है. महाराष्ट्र की दो प्रमुख पार्टियां शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस में अंदरूनी फूट से यह संभव हुआ है.इस उठापटक के कारण भाजपा महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से कम से कम 42 सीटों पर जीत की हकदार बन गयी है.. विधानसभा चुनाव की दृष्टि से अब भाजपा राज्य में पूर्ण बहुमत भी हासिल कर सकती है. इस घटना से पहले हुए सर्वेक्षण में भाजपा को लोकसभा की 22 से 28 सीटों पर जीत की सम्भावना दिख रही थी. राष्ट्रवादी कांग्रेस में पड़ी फूट से महाराष्ट्र की राजनीति में गुणात्मक परिवर्तन आने की संभावना है. दरअसल भाजपा पिछले कई दशकों से पश्चिम महाराष्ट्र में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी क्योंकि पश्चिम महाराष्ट्र सहित आसपास के कई इलाकों पर पवार साहेब का वर्चस्व बना हुआ है. इस कारण भाजपा अपने दम पर महाराष्ट्र में सरकार नहीं बना पा रही है. लेकिन इस नई उथल पुथल से राजनीतिक समीकरण में परिवर्तन की संभावना बन सकती है. भले ही भारतीय जनता पार्टी शिंदे सेना के साथ राज्य में सरकार चला रही है.लेकिन एक साल के अंदर राज्य के दो प्रमुख दलों में हुई फूट का यह संकेत है कि कोई भी दल सिद्धांतहीन अवसरवादी समझौते कर सत्ता तो हासिल कर सकता है ,पर इसका खामियाजा अंततः संगठन को भुगतना पड़ता है.यही कारण है कि रविवार,2 जुळाई को शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस में दरार पड़ गयी. इसका कारण भी हाल में पार्टी नेतृत्व द्वारा लिए गए कई अटपटे फैसले थे. पहला तो यह कि राकांपा प्रमुख 23 जून को पटना में विपक्षी एकता के अलम्बरदार बनने चले गए थे.. जहां प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कांग्रेस नेतृत्व का समर्थन कर आये. यह बात अजित पवार के गुट को नागवार लगी. इतना ही नहीं शरद पवार ने अपनी पार्टी के संगठन में जो बदलाव किए वह अजित पवार खेमे को नहीं पच सका. इसी तरह से पवार के कई फैसलों से पार्टी के अंदर अजित खेमा असहज हो रहा था. गौर करने की बात यह भी है कि कुछ माह पहले शरद पवार जब पार्टी पद से इस्तीफा दे रहे थे तो अजित पवार ने इस निर्णय का स्वागत किया था, जो उस दिन की मीटिंग में उनके हाव भाव से दिखा भी था. पर पवार ने अपने वरिष्ठ नेताओं के दबाव में यह फैसला बदल दिया. और पार्टी की कमान बेटी सुप्रिया सुले को दे दिया इस तरह शरद पवार ने अजित पवार को दरकिनार कर दिया. यहीं से पवार साहेब ने फूट की बीज बो दिया. इस का परिणाम दो जुलाई को दिख गया. अजित पवार के रहते सुप्रिया सुले को कमान देकर पार्टी को कमजोर कर दिया गया. क्योंकि राजनीतिक जोड़ तोड़ से अनभिज्ञऔर अनुभवहीन नेतृत्व अजित पवार नहीं सहन कर सके। पवार का या निर्णय अजित को पार्टी से बाहर निकलने का संकेत था. यह जानते हुए भी कि अजित पवार पार्टी के ऊर्जा केंद्र हैं. पश्चिम महाराष्ट्र में पार्टी के स्तम्भ हैं. वह पार्टी के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं. कार्यकर्ताओं से उनका संपर्क हर स्तर पर है. पार्टी के दर्जनों विधायकों को उन्होंने गढ़ा है.विधायक तैयार किये हैं ,उन्हें जिताया है. दरअसल बारामती,सतारा पुणे सहित पश्चिम महाराष्ट्र के लगभग 60 विधानसभा क्षेत्रों के अजित पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्राण वायु हैं. यह समझा जा रहा था कि ढलती उम्र और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर साहेब पवार अजित पर महति जिम्मेदारी सौंप देंगे. लेकिन संतान मोह में वह ऐसा नहीं कर सके और पार्टी में फूट पड़ ही गयी. वैसे अजित पवार अपने साथ 40 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं और अपने साथ 9 नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करा चुके हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस में हुई फूट का पैटर्न लगभग शिवसेना जैसी ही है अजित पवार की इस चाल पर पवार ने वार करना शुरू कर दिया है. उन्होंने नए सिरे से पार्टी को खड़ी करने की हुंकार भर दी है. गुरु पूर्णिमा के दिन वह अपने गुरु यशवंतराव चव्हाण के स्मारक पर घुटना टेकने चले गए.वहाँ काफी जन समर्थन दिखा.. इस धमक से कई बागी नेताओं के पार्टी में लौटने की घोषणा की जा रही है.इस बार अजित पवार पूरी तैयारी से अपने चाचा को चुनौती दी है.वह अपने साथ प्रफुल्ल पटेल,छगन भुजबल,दिलीप वलसे पाटिल जैसे नेताओं को लेकर आये हैं. ये दागी हैं पर अपने निर्वाचन क्षेत्र सहित राज्य की राजनीति पर उनकी पकड़ मजबूत है. ये सभी जनाधार वाले नेता हैं. इनका पार्टी छोड़ना महाराष्ट्र की राजनीति में नया पराक्रम कर सकता है. इस घटनाक्रम का असर मोदी के खिलाफ चल रही विपक्षी एकता मुहिम पर भी पड़ सकता है. यह भी कि महाविकास अघाड़ी के दो घटक शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस कमजोर हो चुकी हैऔर कांग्रेस का दबदबा बढ़ सकता है. इसका पहला लाभ यह होगा कि महाराष्ट्र विधान सभा में विपक्षी नेता का पद कांग्रेस के खाते में जा सकता है. असमंजस की स्थिति ऐसी बन गयी है कि अनुभवी नेता पवार ने आनन् -फ़ानन में अजित पवार की जगह जितेंद्र आव्हाड को विपक्षी दल का नेता घोषित कर दिया.जिसका अधिकार विधानसभा के अध्यक्ष के पास है.वैसे भी राकांपा में हुई बगावत के बाद कांग्रेस के विधायकों की संख्या ज्यादा हो गयी है. इसलिए विधानसभा अध्यक्ष ,इस पद के लिए कांग्रेस के दावे पर विचार कर सकते हैं. उधर पवार भले ही अपने मजबूत चेहरा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उम्र के इस पड़ाव पर सुप्रिया की टीम के साथ वह पार्टी को कितनी ऊंचाई दिला पाएंगे यह समय बताएगा. अब समय भी नहीं है और 2024 का चुनाव सिर पर आन खड़ा हुआ है. और मुकाबला मोदी से है.