कितनी सफल होगी नीतीश बाबू की विपक्षी एकता मुहिम ?
रमेश सर्राफ धमोरा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों का एक मजबूत मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं। इसके लिए नीतीश कुमार देश के विभिन्न क्षेत्रीय दलों के प्रमुखों से मिलकर उन सबको भाजपा के विरोध में एकजुट होने के लिए तैयार कर रहे हैं। नीतीश कुमार का प्रयास है कि मजबूत विकल्प के अभाव में पिछले नौ वर्षों से केंद्र में भाजपा की सरकार चला रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष विरोधी दलों का एक मजबूत विकल्प प्रस्तुत किया जाए। ताकि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को केंद्र की सत्ता से बाहर किया जा सके।
नीतीश कुमार ने जब से बिहार में भाजपा से गठबंधन तोड़ा है। उसके बाद से उनका पूरा प्रयास है कि भाजपा के बढ़ते प्रभाव पर रोक लगाकर उनकी मनमानी को रोका जाए। नीतीश कुमार इस मुहिम में कांग्रेस को भी शामिल करना चाहते हैं। नीतीश कुमार का मानना है कि पहले सभी भाजपा विरोधी दल एक मंच पर आकर चुनाव में भाजपा को हरायें। उसके बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का चयन किया जाएगा। नीतीश कुमार अभी स्वयं को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से बाहर मान रहे हैं। उनका कहना है कि वह स्वयं प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते हैं। चुनाव के बाद बहुमत मिलने पर सभी विरोधी दलों के नेताओं की सहमति से प्रधानमंत्री का चयन किया जाएगा।
नीतीश कुमार इस सिलसिले में बीजू जनता दल के अध्यक्ष व उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष व बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, द्रुमक के अध्यक्ष व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष व तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत ,चौधरी, माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा के महासचिव डी राजा सहित कई अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं से इस संबंध में मिलकर चर्चा कर चुके हैं। इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी से भी नीतीश कुमार की विपक्षी एकता को लेकर विस्तृत चर्चा हो चुकी है।
भाजपा विरोधी दलों में इस समय नीतीश कुमार ही ऐसे नेता है। जिनके सभी दलों के नेताओं से सौहार्दपूर्ण संबंध है तथा वह सभी से खुलकर बात कर सकते हैं। नीतीश कुमार की मुहिम में अधिकांश राजनीतिक दलों ने उनसे साथ देने का वादा भी किया है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, हम सहित कई राजनीतिक दल पहले से ही नीतीश कुमार नीत गठबंधन सरकार में साथ हैं। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, असम से सांसद बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ने भी नीतीश की मुहिम में शामिल होने के लिए हां कर दी है।
नीतीश कुमार अपने भाजपा विरोधी मुहिम में जुटे हुए हैं। मगर उन्हें बहुत से स्थानों पर सफलता भी नहीं मिल रही है। कहने को तो उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक उनके बहुत ही पुराने घनिष्ठ मित्र हैं। मगर वह नीतीश कुमार की मुहिम में शायद ही शामिल हो। नवीन पटनायक केंद्र की भाजपा सरकार को हर मुद्दे पर साथ देते हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री व वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष जगनमोहन रेड्डी भीं अंततः भाजपा की तरफ ही जाएंगे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव भी कांग्रेस के साथ किसी मोर्चे में शामिल होना पसंद नहीं करेंगे। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्र समिति कर दिया ह। उनका कहना है कि आने वाले चुनावों में वह कई प्रदेशों में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारेंगे। ऐसे में तेलंगाना में उनकी कांग्रेस से सीधी टक्कर है। इस कारण से उनका नीतीश कुमार के मोर्चे में शामिल होना मुश्किल लग रहा है।
बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से दूरी बनाकर चल रही है।। उन्होंने अकेले ही आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है। ऐसी परिस्थिति में वह ऐसे किसी मोर्चे में शामिल नहीं होगी जहां समाजवादी पार्टी व कांग्रेस शामिल हो। आम आदमी पार्टी की भी दिल्ली, पंजाब, गुजरात सहित हिंदी भाषी बेल्ट में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस से भी सीधा मुकाबला है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के वोट बैंक पर ही अपना आधार बनाया है। जहां-जहां कांग्रेस कमजोर हुई है। वहां-वहां आम आदमी पार्टी मजबूत हुई है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन में शायद ही शामिल हो।
केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली में सरकार व उपराज्यपाल के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ अध्यादेश जारी किया गया है। जिसके खिलाफ आम आदमी पार्टी राज्यसभा में सभी विपक्षी दलों से सहयोग मांग रही है। मगर आम आदमी पार्टी को राज्यसभा में सहयोग देने के मसले पर कांग्रेस के अंदर ही विरोध हो गया है। कांग्रेस महासचिव अजय माकन, पूर्व सांसद संदीप दीक्षित, पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रताप सिंह बाजवा सहित कई नेताओं ने आम आदमी पार्टी को कांग्रेस की दुश्मन नंबर एक बताते हुए उसे किसी भी तरह का समर्थन नहीं देने की बात कही है। अजय माकन ने तो कहा है कि आम आदमी पार्टी भाजपा से मिलकर कांग्रेस को कमजोर करने में लगी हुई है। ऐसे में उन्हें किसी भी तरह का समर्थन देना आत्मघाती कदम साबित होगा।
पहले हिमाचल फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा की करारी हार के बाद भाजपा बैकफुट पर नजर आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के धुआंधार प्रचार व रोड शो के उपरांत भी दोनों ही प्रदेशों में भाजपा अपनी सरकार नहीं बचा सकी थी। इससे कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों के हौसले बुलंद नजर आ रहे हैं। कांग्रेस का मानना है की राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर विधानसभा के आगामी चुनाव में यदि विपक्षी दल एकजुट होकर चुनाव लड़े तो भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है।
यदि इन प्रदेशों के विधानसभा चुनाव में भाजपा हार जाती है तो अगले लोकसभा चुनाव में उसका मनोबल काफी कमजोर हो जाएगा। वहीं इन प्रदेशों में जीतने से विपक्षी दलों की एकजुटता और अधिक मजबूत होगी। जिसका लाभ उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में मिल सकेगा।
नीतीश कुमार द्वारा आगामी 12 जून को पटना में आयोजित विपक्षी दलों की बैठक अचानक ही स्थगित कर दी गई है। बैठक को स्थगित करने के कारणों का खुलासा नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि अगली तिथि कि घोषणा जल्द ही कर दी जाएगी। आगामी बैठक में जितने अधिक विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे उतनी ही विपक्ष की राजनीति मजबूत होगी। भाजपा को हराने के लिए विपक्षी दलों के नेताओं को आपसी हितों व टकराव को टाल कर एकजुटता से मुकाबला करने पर ही कामयाब हो पायेंगे।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।