मन चंचल भरमे सदा,टिके न कौनो ठौर
आज यहां है कल वहां, स्वामी जैसा शोर
स्वामी जैसा शोर, नहीं स्थायी साथी
कमल,साइकिल कभी,कभी चढ़ जाए हाथी
कह सुरेश कविराय हिया स्थायी लागे
अमित शाह-सा स्थिर है,इत-उत ना भागे
सुरेश मिश्र
मन चंचल भरमे सदा,टिके न कौनो ठौर
आज यहां है कल वहां, स्वामी जैसा शोर
स्वामी जैसा शोर, नहीं स्थायी साथी
कमल,साइकिल कभी,कभी चढ़ जाए हाथी
कह सुरेश कविराय हिया स्थायी लागे
अमित शाह-सा स्थिर है,इत-उत ना भागे
सुरेश मिश्र