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कवि प्राण की एक ग़ज़ल

by zadmin

एक खतरों से लबालब ज़िन्दगानी लिख गया।
दूसरा भी कम न था कुछ सावधानी लिख गया।।1।।

बहुत कम शब्दों में समझाते मिलेंगे लोग अब,
आज फिर कोई कहावत में कहानी लिख गया।।2।।

वह कभी कोई नशा करता न था  फिर भी स्वयं,
रोज रहती है नशे में यह जवानी लिख गया।।3।।

जो न बीवी को कभी अपना सका भर जिन्दगी,
आज मरते वक़्त उसको रातरानी लिख गया।।4।।

झूठ को सच और सच को झूठ लिखता था न वह,
किन्तु अपने मुहल्ले को राजधानी लिख गया।।5।।

जो कभी रुख़सार से बहकर गिरे तेरे लिए,
अश्क़ के उन मोतियों को वक़्त पानी लिख गया।।6।।

प्राण हैं तो महफिल भी जी उठेंगे दोस्तो,
फिर न कहना बात यह कितनी सुहानी लिख गया।।7।।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

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