● होरी के दोहे
धूप फागुनी हो गई , बदन सुहाती छाँव ।
पीली चूनर ओढ़ के , झूम उठा है गाँव ।।
गुलमोहर खिलने लगा,पुलकित हुआ पलाश।
लगी विहसने मालती, आ पहुँचा मधुमास।।
आम्र-मंजरी लग गयी, उत अमवा के बाग।
कुहू-कुहू कोयल करे, छेड़ हिंडोला☆ राग ।।
महुआ मादक हो उठा, महकन लगा समीर।
भँवरे गुनगुन कर रहे, मनवा हुआ अधीर।।
आया फागुन जबहि से, मधुवन हुआ निहाल।
तैयारी करने लगे , केसर और गुलाल ।।
कोयल लग गयी कूकने, भँवरा गाता राग।
लगा गूँजने हर गली, तालबद्ध हो फाग ।।
ढोल-मंजीरा बज उठे, उड़े अबीर-गुलाल।
आज जिसे भी रँग लगे, होगा मालामाल।।
होली आयी जबहि से, मधुवन हुआ निहाल।
अठखेली करने लगे, रंग-अबीर-गुलाल।।
बृज में बाजी बाँसुरी , बही बसंती ब्यार ।
रंग बहाना बन गया , बरस रहा है प्यार ।।
राधा रानी खेलतीं , फाग कन्हैया संग ।
ग्वाल-बाल मस्ती करें , बाजें ढोल-मृदंग।।
रंग जमाने लग गए , केसर और अबीर ।
जिस पर पिचकारी चली, वह हो गया अमीर।।
रंग – बिरंगे हो गये , गोरी जी के गाल ।
मन की मानी हो गई, रहा न कोउ मलाल।।
ऐसी होली खेलिए , होवें लालों लाल।
जीवन की बगिया बने, टेसू और गुलाल।।
आज फेंक ही दीजिए, मन का सभी गुबार।
घृणा-द्वेष सब दूर हों, शेष रहे बस प्यार।।
☆ अशोक वशिष्ठ
(☆फागुन में गाया जाने वाला राग-हिंडोल)