जयशंकर प्रसाद के संपूर्ण साहित्य का बोध कराने वाला ग्रन्थ है जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम- डॉ.कैलाश चंद पंत
भोपाल: प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े रचनाकार के साथ न्याय किया है। प्रसाद जी के अलग-अलग पक्षों पर तो अनेक विद्वानों ने लिखा है लेकिन करुणाशंकर उपाध्याय ने उनके संपूर्ण साहित्य का भारत बोध और अस्मिता बोध के संदर्भ में नए सिरे से मूल्यांकन किया है।यह विचार पिछले दिनों हिंदी भवन भोपाल में आयोजित प्रख्यात आलोचक करुणाशंकर उपाध्याय के आलोचना ग्रंथ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के महामंत्री डॉ.कैलाश चंद पंत ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद जी के अलग-अलग पक्षों पर तो अनेक विद्वानों ने लिखा है लेकिन करुणाशंकर उपाध्याय ने उनके संपूर्ण साहित्य का भारत बोध और अस्मिता बोध के संदर्भ में नए सिरे से मूल्यांकन किया है। इस अवसर पर प्रो.आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम ग्रंथ की विस्तृत समीक्षा करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रसाद की आलोचना परंपरा का मानदंड ही नहीं है अपितु वर्तमान पीढ़ी के आलोचकों एवं शोधार्थियों के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ है। । यह आलोचना ग्रंथ प्रसाद साहित्य के साथ हमेशा पढ़ा जाएगा। प्रोफेसर उपाध्याय ने आचार्य रामचंद्र शुक्ल की तरह सूत्र- वाक्यों में बड़े गहन एवं संश्लिष्ट अर्थ भर दिए हैं जिसकी व्याख्या हजारों पृष्ठों में ही हो सकती है।इसी क्रम में दूसरे वक्ता डॉ.सुधीर शर्मा ने इसे प्रसाद साहित्य की तलस्पर्शी व्याख्या करने वाला ग्रंथ बताया।कवि आनंद सिंह ने कहा कि यह ग्रंथ प्रोफेसर उपाध्याय के प्रदीर्घ साधना का प्रतिफल है। आपने डाॅ.रामविलास शर्मा की पुस्तक निराला की साहित्य साधना से तुलना करते हुए कहा कि यदि जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम के स्थान पर प्रसाद की साहित्य साधना शीर्षक रख दिया जाए तो भी कोई अंतर नहीं आएगा। इसमें डॉ.उपाध्याय ने पहली बार प्रसाद के दार्शनिक, आलोचनात्मक चिंतन के साथ- साथ उनके वैज्ञानिक चिंतन का भी गहन विश्लेषण किया है।
इसी क्रम में प्रख्यात राष्ट्रवादी चिंतक डॉ. रामेश्वर मिश्र पंकज ने कहा कि प्रोफेसर उपाध्याय ने प्रसाद के साहित्य रूपी सहस्र- दल कमल की अधिकांश पंखुड़ियों को उन्मीलित कर दिया है। इन्होंने भटकी हुई हिंदी आलोचना को भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में नए प्रतिमान दिए हैं। यह निश्चित ही प्रसाद की आलोचना परंपरा में आचार्य नंददुलारे वाजपेयी और आचार्य नगेन्द्र की तरह बड़ा काम है।
इस मौके पर ग्रन्थ लेखक करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि प्रसाद का जीवन अपने भीतर महाकाव्य की पीड़ा को समेटे हुए था। वे इस दुख- दग्ध जगत को आनंदपूर्ण स्वर्ग से मिलाने के लिए संकल्पित थे । इन्होंने जिस काव्यात्मक औदात्य के साथ विश्वस्तरीय समस्याओं का चित्रण और उनका निदान प्रस्तुत किया है ,वह अद्वितीय है। प्रस्तुत ग्रंथ उन्हें न्याय दिलाने के उद्देश्य से लिखा गया है। कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व वरिष्ठ आई.ए.एस.अधिकारी डॉ. मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि यह सब जानते हैं कि कामायनी गीतांजलि से बड़ी कलाकृति है लेकिन कोई कहने का साहस नहीं कर पाता था। उपाध्याय जी ने अत्यंत साहस के साथ यह सिद्ध किया है और साथ ही प्रसाद के नाटकों की 206 गीतियों को ही विषय एवं प्रभाव के आधार पर गीतांजलि की 106 गीतियों पर भारी बताया है। यह निश्चित रूप से एक महनीय आलोचना ग्रंथ है।लेखक ने प्रसाद की तुलना भारतीय और पाश्चात्य महाकवियों के साथ करके इस ग्रंथ को व्यापक आयाम दे दिया है।
कार्यक्रम के अंत में डॉ.कैलाश चंद पंत ने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को इस आलोचना ग्रंथ से मार्गदर्शन लेना चाहिए। यह आलोचनात्मक प्रतिमान और भाषिक औदात्य की दृष्टि से भी प्रसाद और रामचंद्र शुक्ल के स्तर पर पहुँच गया है जो हिंदी आलोचना को उसकी वास्तविक भाव- भूमि पर पुनः: प्रतिष्ठित करता है। डाॅ.जया केतकी ने संगोष्ठी का सुंदर संचालन किया। इस अवसर पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी, माधवराव सप्रे संग्रहालय के निदेशक डॉ. विजय दत्त श्रीधर, प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. उर्मिला शिरीष,उदीयमान लेखिका डाॅ. इंदिरा दांगी समेत भारी संख्या में साहित्य- प्रेमी उपस्थित थे।