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खरी-खरी :अशोक वशिष्ठ

by zadmin

खरी-खरी
आया देखो ऋतुराज, सजा है बसंती साज।

कोकिला लगी है सुनो, कुहू-कुहू बोलने।।

खेतों में है हरियाली, बौराई है डाली-डाली।

प्रकृति लगी है जैसे,  झूम-झूम डोलने।।

सुमनों का मकरंद, फूलों में भरी सुगंध।

साँसों में लगा है कोई, मधु रस घोलने।।
अशोक वशिष्ठ 

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