खरी-खरी
आया देखो ऋतुराज, सजा है बसंती साज।
कोकिला लगी है सुनो, कुहू-कुहू बोलने।।
खेतों में है हरियाली, बौराई है डाली-डाली।
प्रकृति लगी है जैसे, झूम-झूम डोलने।।
सुमनों का मकरंद, फूलों में भरी सुगंध।
साँसों में लगा है कोई, मधु रस घोलने।।
अशोक वशिष्ठ