मेघालय चुनाव में राजनीतिक दलों के
तेवर से विपक्षी एकता को झटका
नई दिल्ली। विधानसभा सीटों की संख्या के आधार पर मेघालय पूर्वोत्तर का छोटा सा राज्य है, लेकिन 27 फरवरी को होने जा रहे चुनाव का प्रभाव बड़ा हो सकता है। चुनाव से पहले जिस आक्रामक अंदाज में तृणमूल कांग्रेस मैदान में उतरी है, उससे जीत चाहे जिसकी हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता के प्रयासों को झटका लगना तय है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस 21 विधायकों के साथ राज्य में मजबूत पार्टी बनकर उभरी थी, परंतु बाद में उसके सारे विधायक इधर-उधर हो गए। 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति अभी शून्य पर है। भारत जोड़ो यात्रा के सहारे विपक्षी दलों को साधकर कांग्रेस का कद बड़ा करने के अभियान पर निकले राहुल गांधी को मेघालय में तृणमूल कांग्रेस की ओर से लगातार आघात मिल रहा है। विधायकों के अतिरिक्त भी बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं ने तृणमूल का दामन थाम लिया है।
ममता के इस तेवर से कांग्रेस को मेघालय में प्रत्याशियों के चयन में भी दिक्कत आ रही है। दोनों दलों की कटुता का अभी अंत नहीं है। जैसे-जैसे प्रचार आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे आरोप-प्रत्यारोप का लहजा तल्ख होता जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीर रंजन का ममता बनर्जी पर दलाली के आरोप से चुनाव बाद भी गठबंधन के लिए आवश्यकता पड़ने पर बातचीत का रास्ता बंद हो सकता है।
लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की चुनौती का सामना करने के लिए विपक्ष को मजबूत विकल्प की तलाश है। अलग-अलग दिशाओं में चल रहे भाजपा विरोधी दलों को एक मंच पर लाने का प्रयास भी जारी है। ऐसा ही प्रयास बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर भी अपने-अपने स्तर से कर रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षा अगली पंक्ति में खड़ा होने की है। इसलिए वह अपने धुन में चल रही है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि भाजपा को चुनौती देने के मोर्चे पर कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अभी शक्तिशाली विकल्प है, जो ममता को मंजूर नहीं है। इसलिए मेघालय में सभी सीटों पर एकतरफा प्रत्याशी उतारकर उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी एकला चलो का संकेत दे दिया है।
मेघालय में 2018 में कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद भी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सरकार बनी, जिसमें दो विधायकों के साथ भाजपा की भी भागीदारी है, लेकिन इस चुनाव में दोनों अलग-अलग लड़ रहे हैं। कांग्रेस और तृणमूल का भी किसी भी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं हुआ है। इस तरह मेघालय में सक्रिय सभी प्रमुख दल अपने बल पर ही मैदान में हैं। सबकी शक्ति की एकाकी परीक्षा होनी है।