भक्तों के भाव को जान लेने वाले मेहकर के बालाजी
मेहकर से लौटकर संजीव शुक्ल
मुंबई: महाराष्ट्र के बुलडाणा जिले के मेहकर में बाला जी की दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति स्थापित है। काले रंग की यह मूर्ति 11 फुट ऊंची है। इस मंदिर को श्री शारंगधर का मंदिर कहा जाता है। यह प्राचीन मंदिर है। यह मूर्ति 1888 में उत्खनन करके बाहर निकाली गयी है। सृष्टि के साथ उत्पन्न हुई पैन गंगा नदी के तट पर यह मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि बाला जी की यह मूर्ति दुनिया में सबसे ऊंची है । इसकी ऊंचाई 11 फुट एवं चौड़ाई 4 फुट तथा मोटाई 2 फुट है। विशाल काले रंग के शिला में यह मूर्ति है। मूर्ति के साथ श्री लक्ष्मी, भू- देवी विराजमान हैं। इस मूर्ति की यह विशेषता है कि इस जगह बालाजी के साथ लक्ष्मी जी विराजमान हैं इसलिए यहाँ पर लक्ष्मी नारायण के दर्शन का लाभ होता है। मूर्ति के श्री चरणों में जय विजय एवं भू देवी विराजमान हैं। भगवान की मूर्ति चतुर्भुज है हाथ में शंख , चक्र , गदा ,पद्म धारण किये हुए हैं। मूर्ति के छोर पर भगवान का दशावतार मत्स्य , कच्छप ,वराह ,नरसिंह , वामन जबकि दाहिने तरफ परशुराम, राम , कृष्ण , बौद्ध , कल्कि है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु महेश निहित हैं इस तरह तीनों देवों का दर्शन एक ही जगह पर होता है। इस बालाजी का दर्शन का मतलब है कि आत्मरूप का दर्शन होता है। बताया जाता है कि भक्त के मन में जो भाव आता है ,वही भाव मूर्ति के मुख पर उमड़ कर आता है। यह जगह अत्यंत जागृत है। यह मन की इच्छा पूरी करने वाले, सभी कार्यों को सिद्ध करने के लिए मशहूर है। ज्ञातव्य है कि मेहकर का मूल नाम ‘मेघंकर ‘ है। यह अजंता पर्वत के ॐ आकार के टेकड़ी पर बसा हुआ है। यह बुलडाणा जिले के तालुके में आता है अत्यंत प्राचीन इतिहास वाला यह पुण्य स्थान है। ब्रम्हांड पुराण के गौतमी महात्म्य में इसका उल्लेख मिलता है। सृष्टि की उत्पत्ति के पूर्व ब्रम्हदेव ने तपस्या करके यज्ञ आरम्भ किया था उसमें लगनेवाले बर्तनों मेघंकर के यहाँ थे। इस प्रणिता पात्र से विधि पूर्वक जल अभिमंत्रित करके भूमि पर छोड़ा तब इस पात्र के जल से ‘प्रणिता ‘ पैन गंगा ‘ अथवा पावन गंगा इस नदी का उद्गम हुआ। ब्रम्ह देव द्वारा उद्गमित की गयी सृष्टि के साथ ही जन्म पायी जग की पहली नदी होने के कारण इसे ‘वृद्ध गंगा ‘ का नाम भी प्राप्त हुआ। मेघंकर का उल्लेख अनेक पुराणों और तत्सम ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है। मत्स्य पुराण में इस क्षेत्र का उल्लेख स्पष्ट तौर पर आया है। मत्स्य पुराण के 22 वें अध्याय के 39-40 श्लोक में यह कहा गया है कि अत्यंत पवित्र ऐसे मेघंकर तीर्थ क्षेत्र में भगवान श्री शारंगधर का निवास है। भगवान शारंगधर का अधिष्ठान इस नगरी में होने का दूसरा प्राचीन एवं स्पष्ट उल्लेख गौतमी महात्म्य में आता है।