” सशक्त” लोकायुक्त विधेयक कानून बनाने वाला महाराष्ट्र बना पहला राज्य
संजीव शुक्ल
नागपुर: महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे सप्ताह के तीसरे दिन बुधवारकोबहुचर्चित महाराष्ट्र लोकायुक्त विधेयक-22 पारित हो गया। यह मुख्यमंत्री और मंत्री को भ्रष्टाचार रोधी संस्था लोकपाल के दायरे में लाने का प्रावधान वाला लोकायुक्त विधेयक है। यह विधेयक बिना किसी चर्चा के पास हुआ। यह सशक्त विधेयक है। यह भ्रष्ट अधिकारियों , मंत्रियों ,मुख्यमंत्री के लिए घोर मुसीबत बनेगा।
मंत्री दीपक केसरकर ने विधेयक को पेश किया। बुधवार को जब यह विधेयक पारित हुआ तब विपक्ष के सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सदन में बताया कि इस विधेयक के अंतर्गत मुख्यमंत्री, मंत्री को लाया गया है। यह करते समय कोई झूठी शिकायत नहीं हो इसके लिए फिल्टर भी रखा गया है। गलत शिकायतें दाखिल नहीं हो इसका प्रावधान रखा गया है। उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को इसमें रखा गया है। इसमें पैनल तैयार किया गया है। उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने सदन में कहा कि एक ऐतिहासिक विधेयक हमने पारित किया है। कामकाज करने के लिए हमें निश्चित बंधन रहेगा। इस तरह का विधेयक पारित करने वाला महाराष्ट्र देश का पहला राज्य बन गया है। केंद्र सरकार के लोकपाल कानून को तैयार करने के बाद विभिन्न राज्यों में लोकायुक्त बनाने की उम्मीद की जा रही थी। उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने सदन में कहा कि इस विधेयक के लिए मशहूर समाजसेवी अन्ना हजारे ने आंदोलन किया था। उस समय मैं और गिरीश महाजन गए थे। उस समय अन्ना हजारे को दिए गए आश्वासन के अनुरूप और उनको विश्वास में लेकर यह विधेयक तैयार किया गया है। इसके लिए एक समिति बनाई गयी थी। इस विधेयक को सटीक बनाने के लिए अन्ना हजारे और विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाई गई सभी सिफारिशों को स्वीकार किया गया है ।
फडणवीस ने कहा कि इस विधेयक को मंज़ूर करने के दौरान विपक्ष सदन में रहता तो अच्छी बात होती लेकिन वह अनुपस्थित रहा। उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि राज्य का पिछला लोकायुक्त कानून साल 1971 का है। पहले और वर्तमान कानून में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि पहले के कानून के अंतर्गत भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम नहीं शामिल था ऐसे में विशेष प्रकरण के रूप में जाँच करनी पड़ती थी लेकिन अब यह कानून लोकायुक्त में आ गया है। पहले के कानून में मंत्री और मुख्यमंत्री को शामिल नहीं किया गया था। इक्का – दुक्का मंत्री के खिलाफ शिकायत मिली तो विशेष मामले के रूप में जांच के लिए राज्यपाल कह सकते थे। इसमें केवल सिफारिश करने का अधिकार था। नए कानून में अब मुख्यमंत्री, मंत्री और जनप्रतिनिधि भी लोकायुक्त के अधीन हैं। भ्रष्टाचार की कोई घटना होने पर अब लोकायुक्त सीधे कार्रवाई कर सकेंगे। लोकायुक्त कानून में वर्तमान मुख्यमंत्री या पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले विधानसभा अध्यक्ष से पूर्व अनुमति लेने का प्रावधान किया गया है। इस बारे में प्रस्ताव पेश करते हुए कुल दो तिहाई सदस्यों का अनुमोदन आवश्यक होगा। वहीं मंत्रियों के खिलाफ जांच का अधिकार राज्यपाल , विधान परिषद सदस्यों के बारे में सभापति और विधानसभा सदस्यों के बारे में जांच की अनुमति देने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को दिया गया है। मुख्यमंत्री के पास आईएएस,आईपीएस, आईएफएस जैसी सेवाओं में अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच को अधिकृत करने की शक्ति होगी। संबंधित मंत्रियों को अन्य अफसरों के बारे में पूछताछ की अनुमति देने का अधिकार दिया गया है।