खरी-खरी
तुले हुए हैं हम गुलशन को, करने पर बर्बाद।
हैं गणतंत्र देश के वासी, हम सब हैं आज़ाद।।
ठेंगे पर क़ानून, भरा नस-नस में भ्रष्टाचार।
मेरा स्वार्थ सधे फिर जाये, चूल्हे में संसार।।
मर्यादा संस्कृति अनुशासन, ये सब भुले हुए हैं।
कैसे खोदें जड़ अपनी, हम इस पर तुले हुए हैं।।
अशोक वशिष्ठ