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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
तुले हुए हैं हम गुलशन को, करने पर बर्बाद।
हैं गणतंत्र देश के वासी, हम सब हैं आज़ाद।।

ठेंगे पर क़ानून, भरा नस-नस में भ्रष्टाचार।

मेरा स्वार्थ सधे फिर जाये, चूल्हे में संसार।।

मर्यादा संस्कृति अनुशासन, ये सब भुले हुए हैं।

कैसे खोदें जड़ अपनी, हम इस पर तुले हुए हैं।।
अशोक वशिष्ठ 

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