हिंदी आलोचना के अमिताभ बच्चन हैं प्रोफेसर उपाध्याय – डॉ. सत्यकेतु सांकृत
नई दिल्ली:वर्तमान हिंदी आलोचना के अमिताभ बच्चन हैं प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय। ये जहाँ खड़े होते हैं वहीं से लाइन शुरू होती है। इनके द्वारा लिखा गया ‘ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम ग्रंथ एक बड़ा कार्य है जो एक मास्टर पीस है। इसके द्वारा इसी तरह की लाइन खींच दी गई है’- यह बात महाकवि जयशंकर प्रसाद की पुण्यतिथि के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज द्वारा आयोजित संगोष्ठी में आंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के डीन डाॅ.सत्यकेतु सांकृत ने कही।यह महज संयोग है कि स्वयं अमिताभ बच्चन भी किरोड़ीमल कालेज से पढ़े हैं। इसके पूर्व प्रोफेसर उपाध्याय के सद्य: प्रकाशित आलोचना ग्रंथ जयशंकर प्रसाद महानता के आयाम पर बोलते हुए प्रो.आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी आलोचना में पिछले पचास- साठ वर्षों में इस ढंग का और इस स्तर का दूसरा आलोचना ग्रंथ नहीं आया है। यह बड़े से बड़े पुरस्कार का अधिकारी है। जहाँ तक मैंने पढ़ा है तो यही कह सकता हूँ कि प्रसाद के संपूर्ण आलोचना साहित्य के अंतर्गत ऐसा मुकम्मल आलोचना ग्रंथ दूसरा नहीं है। डॉ. त्रिपाठी ने प्रसाद की महत्ता को सिद्ध करने के लिए गीता के 18 अध्याय की तरह बनाए गए प्रतिमानों की विशेष रूप से चर्चा करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रसाद के मूल्यांकन के लिए न केवल वैश्विक प्रतिमानों की निर्मिति करता है अपितु विश्व के पंद्रह सबसे बड़े महाकवियों के साथ उनकी तुलना करके उन्हें बीसवीं शती का सबसे बड़ा महाकवि भी सिद्ध करता है। इसमें विविध विधाओं में लिखे गए प्रसाद के संपूर्ण साहित्य का जो तलस्पर्शी और गहन विश्लेषण हुआ है वह वर्तमान समय की आलोचना के लिए दिशा-दर्शक है। उपाध्याय ने जिस सूक्ष्मता के साथ प्रसाद के नाटकों की 206 गीतियों के साथ रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीतांजलि के 108 गीतियों के साथ तुलना की है वह बेहद महत्वपूर्ण है। इसमें जिस गंभीर भाषा का प्रयोग हुआ है वह अपने उदात्त,काव्यात्मक और लयात्मक रूप के कारण अतिशय प्रवाहपूर्ण है। इसमें वैचारिक तारतम्यता एवं शिल्पगत कसावट है। एक भी वाक्य अतिरिक्त नहीं है। इससे पाठक को कहीं भी असुविधा नहीं होती है। दूसरे वक्ता प्रवासी संसार के संपादक डाॅ. राकेश पाण्डेय ने कहा कि इसमें केवल प्रसाद साहित्य के संपूर्ण साहित्य का नए सिरे से मूल्यांकन ही नहीं मिलता अपितु भारतीय ज्ञान परंपरा के सही संदर्भ में प्रसाद को देखने- परखने की दृष्टि भी मिलती है। उन्होंने महात्मा गांधी और जयशंकर प्रसाद वाले अध्याय पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें जिस ढंग से दोनों की तुलना की गई है,वह अद्वितीय है। एक बार ऊपर से देखने पर इसकी भाषा कठिन लग सकती है लेकिन जब आप पढ़ना आरंभ करते हैं तो इसमें जो प्रवाह और डूबकर लिखने की शैली है वह बांध लेती है। आलोचना की भाषा ऐसी ही स्वाभाविक एवं उत्कृष्ट होनी चाहिए। इस ग्रंथ के लेखक और मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर करुणाशंकर उपाध्याय ने कहा कि महाकवि जयशंकर प्रसाद के साथ न्याय करने के उद्देश्य से यह ग्रंथ लिखा गया है। प्रसाद जी को केवल आचार्य रामचंद्र शुक्ल और उनके सच्चे उत्तराधिकारी कवि मुक्तिबोध ही उन्हें सही ढंग से समझ पाए थे, परन्तु वे दोनों भी अपने वैचारिक आग्रहों के कारण पूर्णत: न्याय नहीं कर पाए। वस्तुत: प्रसाद जी भारत बोध के नायक हैं। इनका सृजन जटिल, बहुस्तरीय और बहुलार्थी है। उसमें संपूर्ण भारतीय ज्ञान परंपरा और विश्व जीवन संश्लिष्ट है अत: उसका सही विश्लेषण किसी एक विचारधारा अथवा प्रतिमान द्वारा संभव ही नहीं है। हमने भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र और प्रसाद साहित्य से निकलने वाले प्रतिमानों के संश्लेषण द्वारा उनके संपूर्ण साहित्य का अभिनव पाठ निर्मित किया है। इनका साहित्य अपनी गतिशील अर्थवत्ता के कारण आज और भी प्रासंगिक हो उठा है। कामायनी तो वैश्वीकरण के दौर का महाकाव्य प्रतीत होता है। कार्यक्रम के आरंभ में सूत्रधार प्रो.शोभा कौर ने अतिथियों का परिचय देते हुए उनका स्वागत किया। डाॅ.कौर ने कहा कि यह उनके छात्रों के लिए एक सुनहरा अवसर है जब वे इतने बड़े आलोचकों को देख और सुन सकते हैं।प्रो.उपाध्याय के इस ग्रंथ पर परिचर्चा का आयोजन इसलिए किया गया है कि इसके द्वारा जयशंकर प्रसाद के संपूर्ण साहित्य को भारत बोध और विश्वबोध के संदर्भ में समझा जा सकता है।कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य प्रो. विभा सिंह चौहान ने उपस्थित अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर डॉ. ऋतु वार्ष्णेय गुप्ता, डाॅ. मंजू रानी, डाॅ.बली सिंह, डाॅ. दर्शन पाण्डेय, डॉ.राकेश पांडेय, डाॅ.ए.के. सिंह, डाॅ.अमन कुमार जायसवाल, डाॅ.महेन्द्र प्रजापति, डाॅ.अनुराग सिंह शेखर समेत भारी संख्या में प्राध्यापक और छात्र उपस्थित थे।