संजय राउत के गोलबचन के मायने
जेल से छूटने के बाद उद्धव सेना के नेता संजय राउत के बदले बोल को लेकर तरह तरह की राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है. आखिर संजय राउत महाराष्ट्र की नयी सरकार की प्रशंसा क्यों कर रहे हैं.? उनके गोलबचन और और अंदाजे बयां से यह कहा जाने लगा है कि वह कोई नया पांसा फेंक रहे हैं. समझा जा रहा है कि उपमुख्य मंत्री के निर्णयों की सराहना कर वह भाजपा और शिंदे सेना के बीच भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं. वह कौटिल्य शास्त्र के सूत्र को पकड़कर पुराने रिश्तों को खंगालने और नए रिश्तों में दरार डालने की नीति पर चल रहे हैं. संजय राउत ने माविआ सरकार के दौरान फडणवीस सरकार पर जिस तरह के प्रहार किये थे शायद वह भूल गए. और अब जेल से छूटने के बाद उनका ह्रदय परिवर्तन सचमुच कोई संकेत है. उन्होंने जिस तरह से शिवसेना को भाजपा से दूर ले जाकर नई राजनीति गढ़ी उसका परिणाम सामने आ गया. सत्ता के लिए एक सिद्धांतविहीन गठबंधन बनाकर शिवसेना की बुरी गत करा दी. एक राजनीतिक हाराकिरी हो जाने के बाद श्री राउत भाजपावालों पर सुमन वृष्टि कर रहे हैं. यह आशंका और कुशंका दोनों पैदा करता है. यह तो सत्य है कि शिव सेना को जितना बर्बाद राजनीति ने नहीं किया उतना संजय राउत की जिद्द ने किया. आखिर जिन शिवसैनिकों ने शिवसेना को फर्श से उठाकर अर्श तक पहुँचाया वे ही अलग हो गए. अपनी गलतियों में झाँकने के बजाये उन्हें गद्दार कहा जो इस सिद्धांतविहीन राजनीति में अपना अस्तित्व संभाल रहे थे.जिस व्यक्ति ने कभी चुनाव नहीं लड़ा ,कभी मतदाताओं का सामना नहीं किया उसने एक ऐसा चक्र चलाया कि शिवसेना में ही बगावत हो गयी. अब संजय राउत जब बाजी हार चुके हैं तो उन्हें भाजपावालों की याद आ रही है. अब रिश्ते सुधारने के लिए देवेंद्र फडणवीस की एकतरफा स्तुति कर शिंदे सेना और भाजपा में नया भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं. देवेंद्र फडणवीस की सरकार में शिवसेना भी थी तब तो अंदाजा लग ही जाना चाहिए था कि फडणवीस की कार्य शैली कैसी है. फिर ढाई ढाई साल का शिगूफा छेड़ कर युति तोड़वाने का पाप संजय राउत ने किया. उसी का भान उन्हें जेल में 100 दिन रहकर हो गया होगा. और अब वे प्रायश्चित करने के लिए स्तुति सुमन की वर्षा कर रहे हैं. यह सही है माविआ सरकार में राज्य की कई क्रियाशील गतिविधियों को रोक दिया गया. मुख्य मंत्री वर्क फ्रॉम होम के मोड़ में थे। राज्य का फेसबुकिया सञ्चालन गजब का था. पुलिस अधिकारी ही जिलेटिन रखते पकड़े गए.ऐसे कई उदाहरण है जो अब पुराने पड़ गए हैं लेकिन शिंदे -फडणवीस की सरकार में काम ने गति पकड़ी है.एक सक्रिय सरकार अड़चनों को पार करते हुए काम कर रही है. कई प्रकल्प पर काम रफ़्तार से बढ़ रहा है. मेट्रो. कोस्टल रोड सहित मुंबई नहावा सेवा लिंक पर काम का महत्वपूर्ण चंरण पूरा हो चुका है. सरकार कई कल्याण कारी निर्णय ले चुकी है. म्हाडा को दिया गया अधिकार उनमें से एक है.जो कि सही निर्णय है.म्हाडा एक स्वतंत्र संस्था है. जो सरकारी अड़चनों में पड़कर काम नहीं कर पा रही थी, उसे उसके अधिकार दिए जा रहे हैं. इस निर्णय का संजय राउत ने सराहना की है. . संजय राउत गलफहमी और खुश फहमी दोनों में हैं. जेल से निकलकर वह सोच रहे हैं कि उन पर लगा आरोप समाप्त हो गया है. लेकिन ऐसा नहीं है.उनकी जमानत को निरस्त करने के लिए मामला हाइकोर्ट में चला गया है,जिसपर 25 को सुनवाई होनी है. हाईकोर्ट ने संजय राउत से इस बारे में शपथ पत्र देने को भी कहा है. विशेष अदालत ने जो टिपण्णी की है वह सरकार के एक महकमे पर आक्षेप है. इतनी बड़ी संस्था किसी बेक़सूर को पकड़ने का दुःसाहस कैसे कर सकती है.? विशेष अदालत का यह निर्णय एकतरफा लगता है. ईडी ने इस निर्णय के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है क्योंकि अदालत के कमेंट्स ने पूरी संस्था को कटघरे में खड़ा कर आरोपी को निर्दोष साबित करने का प्रयास किया है. अगर हाईकोर्ट का फैसला संजय राउत के विपरीत आया तो श्री राउत की कठिनाई बढ़ सकती है. इसे समझते हुए वह अपने बयान में नरमी लाने का प्रयास कर रहे हैं. दूसरा यह कि श्री राउत अपने को अब भी बड़ा किंगमेकर समझ रहे हैं. उनकी इस नासमझी ने ही उद्धव ठाकरे के कुनबे का बेडा गर्क किया है. इसका नतीजा यह है कि जिनके खिलाफ स्वर्गीय बाल ठाकरे ने आजीवन कमरकसी ,आज उन्हीं की पदयात्रा में शामिल होकर वैचारिक दिवालियेपन का प्रदर्शन उद्धव सेना कर रही हैं. संजय राउत को यह भी खुशफहमी है कि राजनीति के ढोल को हर तरफ से बजा सकते हैं. जो बदली हुई परिस्थिति में लाभदायक नहीं कही जा सकती. यह भी कि फडणवीस,मोदी और अमित शाह के प्रति मीठे बोल बोलकर अपना राजनीतिक खाता सीधा कर सकते हैं,जो अब संभव नहीं है. श्री राउत ने युति की जड़ पाताल तक खोद कर शिवसेना को शरद पवार का गुलाम बना लिया है. वह फडणवीस की नीतियों की प्रशंसा कर दूर की चाल चल रहे हैं. उन्हें यह गलत फहमी हो गयी है कि शिंदे खेमाँ और भाजपा के बीच अनबन चल रही है. हाल में ऐसे कई घटना क्रम हुए जिसमें दोनों गुटों के नेताओं में अनबन हुई. इसमें बच्चू कडू-राणा प्रकरण,अब्दुल सत्तार ,गुलाब राव पाटिल और संतोष बांगर जैसे नेताओं की मचमच को वह शिंदे गट की बेचैनी समझ रहे हैं। और इसलिए इस पूरे गुट को नजरअंदाज कर संजय राउत ने फडणवीस की तारीफ़ के पुल बांधने शुरू कर दिए हैं. उधर संजय राउत के जेल से छूटने को लेकर किसी अदृश्य हाथ के मदद की चर्चा रंगने लगी है. क्योंकि राष्ट्रवादी गुट में फुस फुस होने लगी है कि अनिल देशमुख और नवाब मलिक तो जेल में रह गए संजय कैसे बाहर आ गए. क्या यह किसी शर्त पर मिली जमानत है या कुछ और। यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
अश्विनी कुमार मिश्र ,
लेखक-निर्भय पथिक के संपादक व राजनीतिक विश्लेषक हैं.