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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
चूल्हे पर जब जल रही, हो कंडे की आँच।

खा जाओगे रोटियाँ , दो के बदले पाँच।।

दो के बदले पाँच, बाजरा हो या मक्का।

हो जायेंगे तृप्त, भतीजे, बबुआ, कक्का।

इतना करिए काम, हाथ रखकर कूल्हे पर।

ले जाएँ दो-चार , जाय रखिए चूल्हे पर।।
अशोक वशिष्ठ 

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