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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
भोर सुहानी हो गयी, शीतल हो गयी रात।

गयी दिवाली दे गयी, जाड़े की सौगात।।

जाड़े की सौगात,  गुनगुनी धूप लग रही। 

शीतल हुई बयार, ताज़गी मन में भर रही।।

बागों में कलरव करें, तोता-मैना मोर।

आलस त्यागो से मनुज, हुई सुहानी भोर।।
अशोक वशिष्ठ

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