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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
बीत गया दीपावली , का जगमग त्यौहार।

हर खिड़की रोशन हुई , रंगोली हर द्वार।।

रंगोली हर द्वार , पटाखे खूब छुड़ाये।

लक्ष्मी पूजन किया , मिठाई जमकर खाये।।

खुशियाँ भरकर टोकरी , दे जाते हैं पर्व।

भारत की इस रीति पर, होता हमको गर्व।।
अशोक वशिष्ठ 

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