Home मुंबई-अन्य धूम मचाती-आली है दीवाली

धूम मचाती-आली है दीवाली

by zadmin

सचमुच आली है दीवाली================
दीप दीप से टँकी चुनरिया, ओढ़ निशा मतवाली। 

धूम मचाती आती सचमुच, आली है दीवाली।।

कोठी कोने छतें अटारी, चौबारे चौहाते।

घूरे तक को दिए आज आलोकित करते आते।।

 मिट्टी के ये दिए मौन हो झिल मिल मिलने वाले।

तिमिर राज के प्रबल विरोधी तिल तिल जलने वाले।।

 लगे हुए हैं स्वस्थ व्यस्ततम तम से टकराने में।

गुड़ी मुड़ी वर्तिका स्नेह को लौ तक पहुँचाने में।।
गंगाजल पर चढ़े दियों ने मिलकर लड़ी बना ली।

अँधियारे की प्रिया अमावस ने सुन्दरता पाली।।

 सचमुच आली है दीवाली।। 
इन्हीं दियों के मुँह से बच्चे लौ को तनिक चुरा के।

 किलकारी भर भर फुलझड़ियाँ छोड़ें विकट फटाके।।

उसी ज्योति को चूम चूम कर मस्ताने दीवाने।

लगा रहे निज “प्राण” दाँव पर हँस-हँसकर परवाने।।
ऊपर शलभ मचलते मन में प्रेम भरा संचारी।

 लेकिन दीपक तले अँधेरे में जीते व्यभिचारी।।

 छाती बज्र बनाकर खुलकर खूब जुआरी।

 कुछ जीते कुछ हारे ऐसे बढ़ने लगी उधारी।। 
इसी द्यूत क्रीड़ा में हारे पाण्डु पुत्र पांचाली। 

यह इतिहास कलंकित करती घटना घटने वाली।।

 सचमुच आली है दिवाली ।।
सागर मथा गया था इस दिन धर्म सनातन गाता।

 प्रगट हुई थी धन की देवी लक्ष्मी सम्पति दाता।।

लंका जीत अयोध्या लौटे राम लखन प्रिय भाई।

 घी के दिए जलाकर जनता ने थी खुशी मनाई।। 
महलों से लेकर झोपड़ियों तक सब पर्व मनाते।

जगती को आलोकित करते गीत ज्ञान के गाते।।

 ज्ञान प्रतीक ज्योति होती अज्ञान तिमिर का द्योता

। माया मन का बिम्ब और तन बल का रूपक होता।। 
आशाओं के अभिनंदन की वाणी मधुरस वाली।

 हमें बधाई देती जाती खुशी-खुशी खुशहाली।। 

सचमुच आली है दीवाली।। सचमुच वाली है दीवाली।।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” 

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