खरी-खरी
घिर-घिर आवें बदरवा, ठंडी चले बयार।
सूर्यदेव पर छा गया, मेघों का परिवार।।
मेघों का परिवार, झमाझम बरसे पानी।
ताल-तलैया भरे, हो गयी धरती धानी।।
किंतु कहीं पर अब भी, सूखा है क्यों आखिर।
उस हिस्से के ऊपर, बदरा जाओ घिर-घिर।।
अशोक वशिष्ठ
खरी-खरी
घिर-घिर आवें बदरवा, ठंडी चले बयार।
सूर्यदेव पर छा गया, मेघों का परिवार।।
मेघों का परिवार, झमाझम बरसे पानी।
ताल-तलैया भरे, हो गयी धरती धानी।।
किंतु कहीं पर अब भी, सूखा है क्यों आखिर।
उस हिस्से के ऊपर, बदरा जाओ घिर-घिर।।
अशोक वशिष्ठ