खरी-खरी
अपने ही गढ़ में घिरे, नूपुर और नवीन।
देश बजाने लगे कुछ,अपनी-अपनी बीन।।
अपनी-अपनी बीन , बैकफुट पर बीजेपी।
बोल दिया सो ठीक, मगर अब घुट-घुटकर जी।।
मन ही मन यूँ लगे , हो रहे पूरे सपने।
मगर बली का बकरा, भी बनते हैं अपने।।
अशोक वशिष्ठ
खरी-खरी
अपने ही गढ़ में घिरे, नूपुर और नवीन।
देश बजाने लगे कुछ,अपनी-अपनी बीन।।
अपनी-अपनी बीन , बैकफुट पर बीजेपी।
बोल दिया सो ठीक, मगर अब घुट-घुटकर जी।।
मन ही मन यूँ लगे , हो रहे पूरे सपने।
मगर बली का बकरा, भी बनते हैं अपने।।
अशोक वशिष्ठ