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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
भटकी-भटकी लग रही, काँग्रेस की राह।

शायद बाकी ना रही, अब सत्ता की चाह।।

अब सत्ता की चाह , बदलना नहीं चाहते

।जो बन सके विकल्प, जतन वह नहीं जानते।।

काँग्रेस की भाषा , लगती अटकी-अटकी।

जनता को क्या राह दिखाये, खुद है भटकी।।
☆अशोक वशिष्ठ 

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