राजस्थान में नहर विवाद बनेगा चुनावी मुद्दा
रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) को लेकर कांग्रेस व भाजपा में विवाद बढ़ गया है। इस परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हो रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत का कहना है कि 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयपुर व अजमेर की जनसभा में राजस्थान के 13 जिलों को मीठा पानी उपलब्ध कराने वाली पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की बात कही थी। जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है। इस परियोजना को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राजस्थान की जनता से वादाखिलाफी कर रहे हैं।
गहलोत का कहना है कि यदि केंद्र सरकार इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दे देती है तो परियोजना की कुल लागत का 90 प्रतिशत खर्चा केंद्र सरकार उपलब्ध करा देगी। राज्य सरकार को मात्र 10 प्रतिशत राशि ही खर्च करनी पड़ेगी। ऐसे में 40 हजार करोड़ रुपयों वाली इस बड़ी परियोजना को धन की उपलब्धता के चलते जल्दी पूरा किया जा सकेगा। जिससे प्रदेश के 13 जिलों का कायाकल्प हो जाएगा। इन 13 जिलों के करीबन साढ़े तीन करोड़ से अधिक लोगों को जहां पीने को मीठा पानी उपलब्ध हो सकेगा। वहीं डेढ़ से दो लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई भी होगी। जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। यह नहर परियोजना पूरी होने पर पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लोगों के लिए एक नई जीवनदायिनी साबित होगी।
दरअसल इस विवाद की शुरुआत जल जीवन मिशन पर जयपुर में 9 राज्यों की रीजनल कॉन्फ्रेंस के दौरान हुई थी। जहां केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और राजस्थान के जलदाय मंत्री महेश जोशी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के मुद्दे पर भीड़ गए थे। महेश जोशी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे का हवाला देकर पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग रखी थी। इस पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने महेश जोशी को भाषण के बीच में ही टोकते हुए कह दिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर के सभा में उक्त नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने पर एक शब्द बोला हो तो मैं राजनीति से संन्यास ले लूंगा।
शेखावत ने जोशी से कहा कि बोलने से पहले आप रिकॉर्ड चेक कर लीजिए। आपके पास वीडियो नहीं है तो दोनों कार्यक्रमों के वीडियो में आपको भेज देता हूं। जिस अजमेर की मीटिंग को आप मेंशन कर रहे हो प्रधानमंत्री ने अजमेर की मीटिंग में एक शब्द भी इस बारे में नहीं कहा। उन्होने केवल प्रस्ताव प्राप्त होने की बात कही थी। हमें एक बार रिकॉर्ड चेक करके सुनिश्चित करने के बाद ही बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं दावे से कहता हूं कि अजमेर की मीटिंग में एक शब्द बोला हो तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा या आप के मुख्यमंत्री राजनीति छोड़ दें। इस तरह की बात कहने का यह तो मंच नहीं है।
महेश जोशी ने कहा था कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाना बहुत जरूरी है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान में दो बार इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का वादा किया था। चाहे जो भी परिस्थिति हो इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाना चाहिए।
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सरकार ने 2017-18 के बजट में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की घोषणा की थी। इस परियोजना में राजस्थान के जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, बूंदी, कोटा, बारां और झालावाड़ सहित कुल 13 जिले शामिल है। इस परियोजना के पूरा होने पर 13 जिलों में पेयजल और सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी।
इस परियोजना में 6 बैराज और एक बांध बनाया जाएगा। नदियों और बांधों को आपस में जोड़ने के लिए 1268 किलोमीटर लंबी नहरे बनेगी। इस परियोजना की लागत फिलहाल 38 हजार करोड रुपए आंकी गई है। इस परियोजना पर अभी तक राज्य सरकार ने अपने बजट से करीबन एक हजार करोड रुपए से अधिक की राशि खर्च कर कई जिलों में बैराज निर्माण कार्य शुरू करवाए हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने 2022-23 के बजट में भी उक्त परियोजना के लिए 9 हजार 600 सौ करोड रुपए देने की घोषणा की है।
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) का मुख्य उद्देश्य राजस्थान के जल प्रबंधन को नए सिरे से विकसित करना है। इस योजना के जरिए दक्षिणी राजस्थान में स्थित चंबल और उसकी सहायक नदियों कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध को आपस में जोड़ा जाना है। इसके साथ ही इन नदियों में बारिश के मौसम के दौरान इकट्ठे होने वाले पानी के लिए नई तकनीकी विकसित करना है। राज्य के जल संसाधन विभाग के अनुसार देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान का भौगोलिक क्षेत्रफल 342.52 लाख हेक्टेयर है। जो पूरे देश का 10.4 प्रतिशत है। लेकिन यहां सतही जल का केवल 1.16 प्रतिशत और भूजल का 1.72 प्रतिशत ही है।
ऐसे में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यहां की पानी की समस्या को दूर करने में अहम भूमिका निभा सकती है। इसके बनने से राजस्थान के 41.6 प्रतिशत क्षेत्रफल में सिंचाई के साथ-साथ 23.67 प्रतिशत क्षेत्र के वाटर लेवल को भी मेंटन किया जा सकेगा। केंद्र सरकार ने 1996-97 में त्वरित सिंचाई लाभ योजना बनाई थी। ऐसी बड़ी परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना कहां गया। राष्ट्रीय परियोजना उन परियोजनाओं को बनाया जा सकता है जिसमें दो लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई हो सके और जल बंटवारे का विवाद ना हो।
अभी तक देश में कुल 16 राष्ट्रीय परियोजनाएं हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सबसे ज्यादा पानी की कमी वाले राजस्थान में इनमें से एक भी परियोजना नहीं है। हालांकि इस परियोजना पर मध्य प्रदेश सरकार ने एनओसी नहीं दी है। मध्यप्रदेश में जब कमलनाथ की सरकार थी तब उस समय परियोजना की एनओसी को रोका गया था। मध्यप्रदेश ने राजस्थान के प्रोजेक्ट पर यह कहकर आपत्ति जताई थी कि यह प्रस्ताव भारत सरकार की अंतर राज्य नदियों की गाइडलाइन के अनुसार नहीं है। गाइडलाइन के अनुसार 75 प्रतिशत निर्भरता होने पर ही परियोजना बनाई जानी थी। लेकिन राजस्थान में 50 प्रतिशत ही निर्भरता की योजना भेजी हुई है। इसके चलते मामला अंतर राज्य विवाद का बन रहा है।
इस परियोजना पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बयान के बाद कांग्रेस ने इस पर विवाद खड़ा कर इसे मुद्दा बना लिया है। इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग को लेकर कांग्रेस पार्टी राजस्थान के 13 जिलों में केंद्र सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन करने लगी है। शेखावत के बयान के बाद कांग्रेस लगातार हमलावर है। राजनीतिक रूप से कांग्रेस इन 13 जिलों में आधे से ज्यादा जिलों में मजबूत स्थिति में है। इस परियोजना को मुद्दा बनाकर कांग्रेस 2023 के चुनाव में फिर से बहुमत हासिल करने के प्रयास में लग गई है। इन 13 जिलों में विधानसभा की 83 सीट आती है। जिनमें से अभी कांग्रेस के पास 49 और भाजपा के पास 25 सीट हैं।
ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस हर हाल में इस मुद्दे को बनाए रखना चाहती है। जिससे मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकें। कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि इस मुद्दे को आगे बढ़ा कर वह भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेर सकती है। पूर्वी राजस्थान में नहर का मुद्दा धीरे धीरे चर्चा का विषय बनता जा रहा है। यदि समय रहते इसका हल नहीं निकला तो चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बनकर राजनीति की धारा को मोड़ने का कारण बन सकता है।
रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।