लेनिन क्रांतिकारी या आतंकवादी
अश्विनीकुमार मिश्र
आज रूस जो कर रहा है वह एक देश का आतंक है. इस आधुनिक आतंकवाद का जनक व्लादिमीर लेनिन, जिसे करीब 20 फीसदी दुनिया आतंकवादी ना मानकर क्रांतिकारी मानती है। यदि यह व्यक्ति ना होता तो शायद आज भारत में आतंकवाद और खासकर की नक्सलवाद ही ना होता। लेनिन की वजह से जो आतंकवाद फैला उसे लाल आतंक कहते हैं और इन आतंकवादियों को कम्युनिस्ट।
इसे समझने के लिये आपको 1881 के रूस में जाना पड़ेगा जब सम्राट अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या की गई, 1889 में अगले सम्राट अलेक्जेंडर तृतीय की हत्या का प्रयास हुआ। 1894 में उनके बेटे निकोलस द्वितीय रूस के सम्राट बने।ये वो दौर था जब रूस में औद्योगिक क्रांति अपने उफान पर थी, रूस के राजाओं ने रूस को विकसित कर लिया और ढेरों उद्योग जन्मे। लेकिन इसी में मार्क्सवादी विचार भी उभर आये जो कहने लगे कि अमीरों का कुछ नही है सब गरीबों का है गरीबों में बांट दो।दरअसल इसमें कोई संदेह नही है कि रूस में मजदूरों की संख्या अधिक थी इसलिए पूंजीवादी सस्ते मजदूर आसानी से उठा रहे थे। इससे एक तरफ बेरोजगारी बढ़ रही थी और दूसरी तरफ जिसके पास रोजगार था वह पर्याप्त कमा नहीं रहे थे।
गरीब वर्ग की मांग थी कि सम्राट निकोलस इसमें कुछ करे लेकिन रूस की शक्तियां निकोलस के मंत्रिमंडल और चर्च के पास भी थी जो कुछ सुनने को तैयार नहीं थे। आखिरकार एक साधारण युवा व्लादिमीर लेनिन ने आंदोलन कर दिया। निकोलस ने उसकी गिरफ्तारी के आदेश दिए तो वह जर्मनी भाग गया।
जर्मन राजा रिश्ते में निकोलस का साला लगता था और ब्रिटेन तथा भारत के राजा जॉर्ज पंचम निकोलस के चचेरे भाई थे। जर्मन राजा ने लेनिन को शरण दे दी क्योकि राजनीति में रिश्ते नही फायदे देखे जाते हैं । इस बीच निकोलस से भी गलतियां हुई और उन्होंने अपने कई विरोधी मरवा दिये इससे उनकी छवि एक हत्यारे की बन गयी।
अब जैसे ही पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ जर्मनी ने ब्रिटेन और फ्रांस की धज्जियां उड़ा दी लेकिन रूस से पराजित होने लगा। तब जर्मन राजा ने रूस से भागे हुए लेनिन को पैसे और मीडिया से मदद की, लेनिन बोलने में उच्च कोटि का था। रूस भले ही जीत रहा था मगर युद्ध के कारण गरीबी और आसमान पर थी। लेनिन ने कहा देश और धर्म कुछ नही होता ये अमीरों के चोचले है।
बस इतना सुनना था कि रूसियो की देशभक्ति शून्य हो गई उन्होंने राजा को अपदस्थ करके उसे कैद कर लिया, लेनिन फिर रूस लौटा और उसने रेड आर्मी बनाई तथा जिन लोगों ने निकोलस को हटाकर सत्ता हथियाई थी उन्हें हटाकर खुद मुखिया बन गया।
लेनिन ने रूस के 300 वर्ष पुराने चर्च रशियन ऑर्थोडॉक्स और रोमानोव वंश का भी अंत कर दिया। निकोलस उनकी पत्नी और उनके 5 छोटे छोटे बच्चों को बेरहमी से मरवाया। पादरी और नन जिंदा जलाए गए, अमीरों को रूस छोड़ना पड़ा या फिर लेनिन के रेड टेररिस्ट की गोलियां खानी पड़ी। लेनिन ने फैक्ट्रियों को लूटकर पैसा गरीबों में बांट दिया और 1924 में मर गया।
कुछ वर्ष तो गरीबों ने मुफ्त की रोटी खाई और जैसे ही ये रोटी खत्म हुई उनकी गरीबी में दस गुना इजाफा हुआ। लेनिन के बाद एक दूसरा ही कम्युनिस्ट जोसेफ स्टालिन तानाशाह बन गया जिसने हिटलर से ज्यादा लोग मरवाये।
स्टालिन ,लेनिन का विरोधी भी था, वह राष्ट्रवाद को थोड़ा बहुत मानता था उसी ने सोवियत संघ की सेना बनाई। स्टालिन की मौत पर एक भी ऐसा रूसी जिंदा नही था जिसने स्टालिन के जीवित रहते उसके खिलाफ कुछ बोला हो।
तात्पर्य यह है कि इन्होंने खुद वो सारे काम किये जिसके विरोध में रूस से राजशाही का अंत किया। मुझे सबसे ज्यादा घृणा होती है कि लेनिन ने निकोलस के छोटे से दिव्यांग बच्चे को भी गोलियों से छलनी करवाया। लेनिन का शव आज भी फ्रीज करके मॉस्को के संग्रहालय में रखा गया है।
लेनिन ने रूस का नाम बदलकर सोवियत संघ किया, सैंट पीटर्सबर्ग शहर का नाम अपने नाम पर लेनिनग्राद कर लिया। सोवियत संघ ने पूरी दुनिया मे कम्युनिज्म का जहर फैलाया, जैसे भारत मे नक्सलवादी जो मानते है कि देश जैसा कुछ नही होता उनका जंगल उनका है, यह कम्युनिस्ट पार्टी की ही देन है। सोवियत संघ ने इसके लिए पैसा बहाया ताकि अन्य देश उस पर निर्भर हो जाये वो अमेरिका से बड़ी सुपरपॉवर बन सके।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की फंडिंग सोवियत संघ ने की और आप देखो कि उन्होंने 25 साल बंगाल पर राज किया और कोलकाता जो कि एशिया का लंदन था उसे कंगाली का अड्डा बना दिया। यदि आप ज्योति बसु का बंगाल देख लेते तो ममता बनर्जी से प्यार हो जाता ऐसा हाल कम्युनिस्टों ने किया था।
लेनिनवाद वो गंदी विचारधारा है जो हर देश के लिये घातक है। 1991 में सत्यमेव जयते हुआ और आखिरकार सोवियत संघ का पतन हुआ और वो 15 देशों में टूट गया। दोबारा रूस की स्थापना हुई और रूस के लोगों ने ही लेनिन की हजारो मूर्तिया गिराई।
एक ऐसा आतंकवादी जिसे उसी के देश मे पसन्द नही किया जाता उसकी मूर्ति हमारे त्रिपुरा तक मे लगी हुई थी, लेकिन वहाँ जैसे ही भाजपा सत्ता में आयी मूर्ति गिरा दी गयी। आजकल भगतसिंह के नाम को आगे किया जा रहा है, आपत्ति भगतसिंह से नही है मगर उनकी आड़ में लेनिन को भी प्रमोट किया जाएगा।