विधायक आवास योजना को लेकर उद्धव की किरकिरी -अश्विनीकुमार मिश्र
विधायकों को घर देने के मामले में महाविकास आघाडी में विवाद पैदा हो गया है. उस पर से उद्धव सरकार के मुख्य सूत्रधार राकांपा सुप्रीमो शरद पवार ने भी विधायकों को आवास देने के फैसले का विरोध किया है. इस से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की फजीहत हो गयी है. यह पहला अवसर है जब शरद पवार ने श्री ठाकरे निर्णय को सिरे से ख़ारिज किया है. 25 मार्च को मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने विधानसभा में महाराष्ट्र के ग्रामीण भाग से आने वाले विधायकों के लिए मुंबई में 300 आवास बनाकर देने का फैसला सुनाया था. ये सभी आवास मुंबई के पश्चिम उपनगर के गोरेगांव में बनाया जाना है. श्री ठाकरे के इस निर्णय का आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने समर्थन भी कर दिया था. ज्योंही इस निर्णय की घोषणा हुई कांग्रेस के बांद्रा पूर्व से विधायक जीशान सिद्दीकी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए ट्वीट कर दिया. सिद्दीकी ने ट्वीट कर कहा था कि मेरे क्षेत्र में रुके पड़े एसआर ए प्रोजेक्ट को पूरा कर ग़रीबों को अच्छा घर देना चाहिए. विधायकों के लिए आवास पर खर्च करने के बजाय उस पैसे से एसआरए की योजना को पूरा करना चाहिए. इस पर सिद्दीकी और आवास मंत्री जितेंद्र आव्हाड में जमकर जुगलबंदी हुई. विवाद इतना बढ़ा कि आखिर अव्हाड ने विधायक के घरों की कीमत 70 लाख लगा दिया. लेकिन इसपर भी विवाद नहीं थमा तो राष्ट्रवादी कांग्रेस के सुप्रीमो शरद पवार ने अपने वीटो का इस्तेमाल करते हुए विधायकों को आवास देने की योजना का खुला विरोध कर दिया. इस योजना को लेकर श्री पवार ने कहा कि राज्य पर 3.50 लाख करोड़ का कर्ज है, ऐसे में विधायकों को 300 नया घर बनाकर देना सही फैसला नहीं है.इस तरह की आलोचना से मुख्यमंत्री की किरकिरी हुई है. इस से यह भी भान होने लगा है कि स्वयं मुख्यमंत्री कान भरू सलाहकारों की सलाह पर चल रहे हैं. उन्हें जमीनी हकीकत का सीधा अंदाजा नहीं है. मातोश्री से सरकार चलाने पर ऐसे ही उटपटांग निर्णय आने लगते हैं. यह कहा जा सकता है कि मुख़्यमंत्री अपने विधायकों को सुविधा देने के लिए तत्पर हैं,लेकिन इस समय ऐसा निर्णय लेना उचित नहीं है.
विधानमंडल के रिकॉर्ड के अनुसार 366 विधायकों में से 288 विधानसभा के सदस्य हैं और 78 विधान परिषद् के. इनमें से 60 विधायक मुंबई,ठाणे व नवी मुंबई के हैं.इसलिए ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले 300 विधायकों के आवास की व्यवस्था मुंबई में मुख्यमंत्री करना चाहते हैं.उनकी मंशा सही जरूर है. लेकिन लगता है इसपर दूर दृष्टि नहीं डाली गई है. यही कारण है कि महाविकास आघाडी में शामिल कांग्रेस पार्टी ने पहला मिसाइल दाग दिया. अब शरद पवार के विरोध से राष्ट्रवादी के विरोध का ठप्पा भी लग गया। और तो और मुख्यमंत्री की विधायकों को आवास देने की योजना से कांग्रेसी कोटे से कैबिनेट मंत्री अशोक चव्हाण ने भी पल्लाझाड़ते हुए इस तरह के किसी सरकारी निर्णय के बारे में सार्वजनिक रूप से अनभिग्यता प्रकट कर दिया है.
मुख्यमंत्री की विधायक आवास योजना को लेकर विपक्ष ने भी चुटकी ली है. उसका कहना है कि महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी की सरकार डांवाडोल है.विधायक बड़ी मात्रा में नाराज है. ऐसे में उन्हें एकजुट रखने के लिए उद्धव ठाकरे ने चारा डाला है.लेकिन उनका यह निर्णय भी फंस गया है. विधायकों को आवास देने के मामले में एक पेंच यह भी है कि प्रत्येक चुनाव में 16 से 20 फीसदी नए विधायक चुने जाते हैं. ऐसे में प्रत्येक विधानसभा चुनाव के बाद कम से कम 30 -40 नए विधायकों को आवास देना पड़ेगा।और हर पांच वर्ष में नवनिर्वाचित विधायकों के लिए नई नई इमारतें बनाने का नया झंझट सरकार न पाले तो अच्छा है.
वैसे भी मुंबई में आने वाले विधायकों के लिए विधान भवन के पास हॉस्टल की व्यवस्था है.मंत्रियों के लिए अलग बँगला है. वैसे भी ग्रामीण भाग से आने वाले विधायक हमेशा मुंबई में नहीं रह सकते हैं. उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र में रहना पड़ता है.ऐसे में सरकार चाहे तो विधायकों के लिए एक नया हॉस्टल-इमारत बनवा दे .सरकार को पता है कि मुंबई में जगह की कमी है। यहाँ 40000 पुलिसवालों, 30000 सफाई कामगारों को आवास देने का मामला लंबित पड़ा है. इसके अतिरिक्त करीब 40 लाख झोपड़ों का पुनर्वसन होना है. राज्य पर कर्ज है. ऐसे में उद्धव सरकार के इस निर्णय की आलोचना होना लाजिमी है. इसलिए मुख्यमंत्री को विधायक आवास की योजना को ठंडे बस्ते में डालना उचित होगा.
लेखक निर्भय पथिक के संपादक हैं।