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जनादेश में छिपा महासमर का संदेश

by zadmin

अनिल गुप्ता ‘तरावड़ी’

हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने यह निष्कर्ष दिया है कि ये चुनाव परिणाम मंडल-कमंडल की राजनीति से परे जनता में विकास व भरोसे की सरकार बनाने की आकांक्षा जगाने में कामयाब रहे हैं। भाजपा ने अपने परंपरागत वोट बैंक से हटकर विपक्षी दलों के वोट बैंक में भी सेंध लगायी है। जाति की राजनीति करने वाले दल आज हाशिये पर आ गये हैं। इसके चलते भाजपा को न केवल अगड़ी जातियों के ही वोट मिले बल्कि पिछड़ी जातियों व दलित समाज के भी वोट मिले जिन पर अब तक सपा व बसपा दावा करती रही थीं। भाजपा को गैर यादव पिछड़ी जातियों तथा गैर जाटव दलित समाज में पैठ बनाने में मदद मिली। कुल मिलाकर भाजपा के जनाधार में वृद्धि हुई जो वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिये भाजपा का उत्साह बढ़ाने में सहायक होगी।

निस्संदेह कांग्रेस पार्टी ने लंबे समय तक केन्द्र के साथ-साथ राज्यों में भी एकछत्र राज किया। आज भाजपा को चुनौती देने वाली कांग्रेस पार्टी हाशिए पर है। हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में पांच में से चार राज्यों में भाजपा की जीत का विशेष महत्व है। राजनीतिक पंडित कह रहे हैं कि यह 2022 का जनादेश 2024 के संसदीय चुनाव की दिशा निर्धारित कर सकता है। दरअसल, इस आकलन की वजह कांग्रेस की निष्क्रियता व बंटा विपक्ष भी है, जो भाजपा के तीसरी बार सत्ता में आने की राह की उम्मीद जगाता है। निस्संदेह, केंद्र की सत्ता में होने का लाभ भाजपा को चुनाव अभियान में मिलेगा। पार्टी के पास साधन-संसाधनों की कोई कमी नहीं है। पार्टी का कैडर आधारित संगठन हार को जीत में बदलने की ताकत रखता है वहीं नरेंद्र मोदी के रूप में एक सशक्त नेता पार्टी की जीत की राह को आसान बनाता है। भाजपा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने अंतिम पायदान पर बैठे आमजन को लाभ पहुंचाया है। मसलन हर घर शौचालय मुहिम, उज्ज्वला योजना, नि:शुल्क राशन, जनधन खाते में पैसा आना, किसान निधि सम्मान योजना, आयुष्मान योजना, प्रधानमंत्री आवासीय योजना ने भाजपा की आमजन में स्वीकार्यता बढ़ाई है।

देश में आज 18 राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकार है। जबकि 2014 में भाजपा की सात राज्यों में ही सरकार थी। उत्तर में हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, यूपी में भाजपा की पकड़ मजबूत है। पश्चिम में राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व महाराष्ट्र में पार्टी का व्यापक जनाधार रहा है। भाजपा दक्षिण में कर्नाटक को छोड़कर काफी कमजोर है। दक्षिण की कुल 135 सीटों में से भाजपा के पास 31 सीटें हैं। कर्नाटक को छोड़कर दक्षिण में भाजपा अपने दम पर 10 सीटें भी नहीं जीत सकती। परंतु अब तेलंगाना में टीआरएस के सामने भाजपा मुख्य विपक्षी दल है व 2024 में भाजपा अपनी सीटों की संख्या बढ़ा सकती है। पूर्व में पश्चिम बंगाल, जहां भाजपा 2019 में एक शक्ति के रूप में उभरी थी व 18 सीटें जीतने में सफल हो गई थी, वहां उसको नुकसान हो सकता है। उड़ीसा में भी भाजपा की संभावनाएं कम हैं। यहां बीजेडी का प्रभुत्व है। उधर, पूर्वोत्तर क्षेत्र में जहां भाजपा 2014 में बहुत कमजोर थी, वहां लगभग हर राज्य में अब भाजपा की सरकार है व पूर्वोतर में 22 संसदीय सीटों में से 12 पर भाजपा का कब्जा है। वर्ष 2024 में यह प्रदर्शन दोहराने की उम्मीद है क्योंकि असम में भाजपा एक शक्ति के रूप में उभरी है। दरअसल, विपक्षी क्षेत्रीय पार्टियों के क्षत्रप अपने राज्यों तक सीमिति हैं। उनकी अपने राज्य से बाहर पहचान कम ही है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से बाहर निकलकर पंजाब में सत्ता प्राप्त की व केन्द्र की राजनीति में भूमिका बढ़ाने की मंशा जतायी है लेकिन इसके पास देशव्यापी संगठन नहीं है। जहां विपक्षी दल चुनावों से छह महीने पहले ही मैदान में आते हैं वहां भाजपा सातों दिन, 24 घंटे चुनावों के लिए रणनीतियां तय करती है। पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने के बाद प्रधानमंत्री तुरंत गुजरात पहुंच गए। वे वहां कार्यकर्ताओं से मिले व चुनाव प्रचार का आगाज भी कर दिया।

पक्की बात है कि कांग्रेस का भविष्य छह राज्यों गुजरात, हिमाचल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश एवं कर्नाटक के आने वाले विधानसभा चुनावों के परिणाम से तय होगा जहां कांग्रेस की भाजपा से सीधी टक्कर है। हां, कर्नाटक में जेडीएस का भी अस्तित्व है। राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है, यहां कांग्रेस अपना प्रदर्शन दोहरा पाएगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। भाजपा को अपने शासित राज्यों में जनता की समस्याओं पर गंभीर मंथन करना होगा। लेकिन कालांतर उन्होंने मोदी-योगी में भरोसा जताया। निस्संदेह, आज ब्रांड मोदी के सामने विपक्ष का कोई सर्वमान्य नेता दिखाई नहीं देता। कांग्रेस के नेतृत्व में किसी किसी विपक्षी गठबंधन की उम्मीदें कम ही हैं। वजह यह भी है कि भाजपा व कांग्रेस की 200 सीटों पर सीधी टक्कर है। वहीं विपक्षी नेताओं की प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा महागठबंधन में बाधक है। कह सकते हैं कि 2022 का जनादेश 2024 की तस्वीर दिखाता है।

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