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खरी-खरी:अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

●खरी-खरी
बम विस्फोटों से हिला, देखो पाकिस्तान।

अपने ही घर में चला, बाजी खुद शैतान।।

बाजी खुद शैतान , जान ली मासूमों की।

खेतों को ही लगी लीलने, खुद की खेती।।

जो औरों के लिए, बढ़ाता अपना दम-खम।

अपनों पर ही फटे, बनाये जो उसने बम।।

अशोक वशिष्ठ 

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