मतदान के रूझानों से उत्तर प्रदेश में योगी का पलड़ा भारी
अश्विनी कुमार मिश्र
उत्तर प्रदेश में पांच चरणों का मतदान हो चुका है, जबकि 2 चरणों में मतदान होना बाकी है। 3 और 7 मार्च को छठे और सातवें चरण की वोटिंग होगी। मतगणना 10 मार्च को होगी। उसी दिन पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के नतीजे भी घोषित किए जाएंगे।
अब तक हुए मतदान में पिछली बार की तुलना में 1 से 2. 5 फीसदी कम या ज्यादा वोटिंग हुई है. यह अन्तर सत्ता पक्ष के खेमे से ज्यादा विपक्षी खेमे में खलबली पैदा कर रहा है. ऐसा मतदान पद्धति सत्ता परिवर्तन का संकेत नहीं दे रहा है. लेकिन इसके परिणाम चौंकाने वाले आयेंगे. इस से लगता है कि बाबा की वापसी होगी लेकिन यह आसान नहीं होगी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 10 फरवरी को पहले चरण की वोटिंग में 62.43 फीसदी मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया। 2017 में 63.47 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 61.84 फीसदी वोट पड़े थे। हालांकि, हिंदुओं के कथित पलायन को लेकर पहले भी सुर्खियों में रहे कैराना में मतदान में इजाफा दर्ज किया गया।
चुनाव आयोग की ओर से उपलब्ध कराए गए डेटा के मुताबिक, 14 फरवरी को दूसरे चरण में 55 सीटों पर 64.42 फीसदी मतदान हुआ, जबकि 5 साल पहले 65.53 फीसदी मतदान हुआ था। 2019 लोकसभा चुनाव में 63.13 फीसदी वोट पड़े थे। जेल में बंद सपा के दिग्गज नेता आजम खान की सीट रामपुर में पिछले विधानसभा चुनाव के बराबर ही करीब 64 फीसदी वोटिंग हुई।
तीसरे फेज की बात करें तो 62.28 फीसदी वोटिंग हुई। पांच साल पहले विधानसभा चुनाव के तीसरे फेज में लगभग इतनी ही 62.21 फीसदी मतदान हुआ था। पिछले लोकसभा चुनाव में 59.73 फीसदी वोटिंग हुई थी। इसी चरण में करहल में भी वोटिंग हुई, यहां से सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं। मुलायम के गढ़ में 1974 के बाद सबसे अधिक वोटिंग हुई।
25 फरवरी को चौथे फेज में 59 सीटों पर वोटिंग हुई थी, जिसमें 61.52 फीसदी मतदान हुआ। 2017 में 62.55 फीसदी वोटिंग हुई थी तो 2019 में 60.3 फीसदी वोटर्स ने मताधिकार का प्रयोग किया था। अयोध्या, प्रयागराज, अमेठी और रायबरेली जैसे जिलों में 61 सीटों पर पांचवें चरण की वोटिंग में 57.32 फीसदी वोटर्स ने ईवीएम का बटन दबाया। 2017 में 58.24 फीसदी और 2019 लोकसभा चुनाव में 55.31 फीसदी मतदान हुआ था। छठे चरण में गोरखपुर अर्बन जैसे सीटों पर वोटिंग है, जहां से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनाव लड़ रहे हैं। 2017 में 56.52 फीसदी वोटिंग हुई थी। अंतिम चरण में पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मतदान होना है।
वोटिंग पैटर्न पर योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि यह कमोबेश पिछले साल की तरह ही है, जिसका मतलब है कि चुनाव सही दिशा में जा रहा है। पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी इस पर हैरानी जताते हुए कहते हैं, ”मुझे आश्चर्य है कि इस बार मतदान प्रतिशत क्यों नहीं बढ़ा? हो सकता है कि इस बार मतदाताओं को जागरूक करने का प्रयास कम हुआ?”
लोकनीति के को-फाउंडर और चुनाव एक्सपर्ट संजय कुमार ने कहा, ”यदि आप पिछले चुनावों से तुलना करते हैं तो वोटिंग बहुत कम नहीं है। 1-2 फीसदी का अंतर है। आमतौर पर जब लोग सरकार बदलने का फैसला करते हैं तो इसके लिए माहौल बनता है, जिससे अधिक मतदान होता है। 2014 लोकसभा चुनाव में यह साफ दिखा था, 2009 के मुकाबले मतदान में इजाफा हुआ था।” एक्सपर्ट ने कहा, ”वोटर्स के मन में उदासीनता है। प्रो इंकम्बेंसी है या एंटी इंकम्बेंसी का नतीजा है यह तो चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद ही कहा जा सकता है।” पिछले कई चुनाव परिणामों के अध्ययन से पता चलता है कि जब सत्ता विरोधी लहर होती है तो मतदान का अंतर 5 फीसदी से बढ़ जाता है. लेकिन इस बार के पांच चरण पूरा होने पर यह अंतर सिर्फ 1 से ढाई फीसदी का है. जिसका संकेत यह है कि अनमने ढंग से भी मतदाता सत्ता परिवर्तन नहीं चाहता है. जिस तरह से उत्तर प्रदेश के कई खण्डों में त्रिकोणीय चुनाव हुए हैं ,उसमें सत्ताधारी को 10 फीसदी सीटों का नुकसान हो सकता है लेकिन योगी सरकार बहुमत के आंकड़ों तक पहुँच सकती है.