विपक्ष के लिए बहुत दूर है 2024
अश्विनी कुमार मिश्र
देश भर में यह चर्चा चल रही है कि उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव 2024 की आम चुनाव की झांकी प्रस्तुत करेगा।लेकिन विभिन्न राज्यों की राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि विपक्षी दल 2024 में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई विकल्प खड़ा कर पाएंगे।यह दीगर बात है कि मोदी के 10 वर्ष के कार्यकाल में कुछ सत्ता विरोधी लहर खड़ी हो जाये,जो कुछ हद तक उत्तर प्रदेश औऱ पंजाब के चुनाव में दिखा भी है।इस चुनाव में उसका भी एसिड टेस्ट होने वाला है।फिलहाल जिन 5 राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें पंजाब को छोड़ भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है।यह कितना तीव्र है इसकी परीक्षा 10 मार्च को होगी।
इन चुनावी उठापटक के बीच क्षेत्रीय राजनीतिक दल नया राजनीतिक समीकरण तैयार करने में लगे हैं।पश्चिम बंगाल में सफल जीत के बाद ममता बनर्जी ने ताल ठोकना शुरू किया।उन्होंने कई राज्यों के भाजपा विरोधी दलों से संपर्क साधा।लेकिन वह अब ठंढी पड़ी हैं।फिर तेलंगाना के टी आर एस नेता मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भी भाजपा के खिलाफ नई लामबंदी शुरू कर रहे हैं।आश्चर्य की बात यह है कि इन दोनों ने महाराष्ट्र का दौरा जरूर किया। क्योंकि भाजपा को रोकने का एक राजनीतिक प्रयोग महाविकास आघाडी सरकार के रूप में सफल हो गया है। भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए तीन अलग अलग विचारधारा वाली पार्टी शिवसेना,कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस साथ आ गए और सबसे अधिक सीट जीतने वाली भाजपा को सत्ता से बाहर रहने पर मजबूर कर दिया। ऐसा 90 के दशक में हुआ था।संभवतः यही प्रयोग ममता बनर्जी और चंद्रशेखर राव को महाराष्ट्र दर्शन के ये विवश किया।लेकिंन ये दोनों भूल रहे हैं कि पश्चिम बंगाल और तेलंगाना की राजनीतिक स्थिति महाराष्ट्र से भिन्न है।महाराष्ट्र में चतुष्कोणीय राजनीति का लाभ गैरभाजपाई दलों ने उठा लिया।वैसे पश्चिम बंगाल में जोर आजमाइश हो चुकी है और वहां भाजपा ताकतवर बनकर उभरी है।लेकिन तेलंगाना में ऐसा नहीं है।वहां टी आर एस के मुकाबले कांग्रेस और तेलगु देशम है।भाजपा वहां जड़ जमाने का प्रयास कर रही है।वहां उनका असली दुश्मन नम्बर वन कांग्रेस है।फिर महाराष्ट्र आकर उन्हें क्या मिला होगा जबकि कांग्रेस यहां सत्ता की भागीदार है।ऐसे में उद्धव व शरद पवार,श्री चंद्रशेखर के किस काम आएंगे यह तो समय बताएगा।लेकिन भाजपा के खिलाफ चंद्रशेखर राव इसलिए ताल ठोक रहे हैं। क्योंकि वे बड़े कर्ज में डूबे हैं और केंद्र से आस लगाए बैठे हैं।यह कर्ज उनकी सरकार ने विश्व बैंक से लिए हैं,जिसे चुकता करना उन्हें कठिन जा रहा है। इसके साथ साथ राज्य में फैला भ्रष्टाचार और कुशासन ने भाजपा को वहां मौका दे दिया है। तेलंगाना के कुछ इलाकों के निकाय चुनावों में झंडा गाड़ रही है।इस से बौखलाए राव मोदी के विरोध में ताल ठोक रहे हैं। लेकिन भाजपा के खिलाफ उनकी लामबंदी सफल नहीं हो पाएगी।क्योंकि 2022 के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव हैं।उसके बाद 2023 में 5 राज्यों कर्नाटक,राजस्थान,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं।उपरोक्त सात राज्यों में से सिर्फ तेलंगाना में ही क्षेत्रीय दल टीआरएस का शासन है।इसलिए इन सातों राज्यों में चुनाव के बाद भी गैरभाजपाई दलों का काम बनता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि तेलंगाना को छोड बाक़ी के राज्यों में मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच है।वहीं तेलंगाना में कांग्रेस और भाजपा टीआरएस के मुकाबले उतरेगी।एक अजीबो गरीब राजनीति बिसात पर टीआरएस के लिए 2024 में मोदी को चुनौती देना टेढ़ी खीर है।उसपर से गैरभाजपाई दलों के खेमें में भी एका नहीं है क्योंकि सबका राजनीतिक टकराव है।आज जो शिवसेना और अकाली दल भाजपा की खिलाफत कर रहे हैं वे एनडीए में वापस भी आ सकते हैं। ऐसे में बिखरे हुए गैरभाजपाई दलों के लिए 2024 बहुत दूर है।विपक्षी एकता में बाधक कांग्रेस
टीआरएस प्रमुख ने जिस भाजपा विरोधी खेमे को संगठित करने में लगे हैंउसमे सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस है।कांग्रेस पहले भी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कुछ क्षेत्रीय दलों को भाजपा के खिलाफ खड़ा किया था. उनकी मदद से भाजपा को केंद्र में आने से रोका था।वह सफल भी हुई।अटल जी की सरकार गिर गई थी।लेकिन इस राजनीतिक उठा पटक का खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ा।अंततः कांग्रेस ने भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों को ठेंगा दिखा दिया।और देश पर 2004 से 2014 तक एक भ्रष्ट और गूंगी-कठपुतली सरकार को लाद दिया।इसका भारतीय जनमानस पर इतना बुरा असर हुआ कि देश कि जनता ने केंद्र सहित कई राज्यों से कांग्रेस को उखाड़ फेंका। और मोदी देश की राजनीतिक पटल पर ताकतवर बन कर उभरे।