Home विविधासाहित्य खरी-खरी:●अशोक वशिष्ठ

खरी-खरी:●अशोक वशिष्ठ

by zadmin
vashishth

खरी-खरी
लिख देती है जीत कहीं, तो लिख देती है हार।

उँगली की स्याही की होती, बड़ी बेरहम मार।।

अच्छे-अच्छे तीस मार खाँ, हाथ जोड़ते आते।

तरह-तरह की बातें करके, वादों की भरमार।।

वादे, नारे, जाति-धर्म सब, धरे हुए रह जाते।

पाँच साल के किये धरे का, पल भर में निपटार।।
अशोक वशिष्ठ 

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