●खरी-खरी
होने लगते देश में , जब भी कहीं चुनाव।
असली मुद्दे छोड़कर, चलते खोटे दाँव।।
चलते खोटे दाँव , धर्म आड़े आ जाता ।
बुर्का और हिजाब , रंग अपना दिखलाता।।
अपने-अपने बीज , घृणा के बोने लगते।
धर्म और मजहब , के चर्चे होने लगते।।
●अशोक वशिष्ठ
●खरी-खरी
होने लगते देश में , जब भी कहीं चुनाव।
असली मुद्दे छोड़कर, चलते खोटे दाँव।।
चलते खोटे दाँव , धर्म आड़े आ जाता ।
बुर्का और हिजाब , रंग अपना दिखलाता।।
अपने-अपने बीज , घृणा के बोने लगते।
धर्म और मजहब , के चर्चे होने लगते।।
●अशोक वशिष्ठ