कहीं मोदी के भेदिये तो नहीं प्रशांत किशोर !!
कांग्रेस के नीतिगत निर्णयों पर टिप्पणी करने के अपन अधिकारी नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से क्या गलत और क्या सही है, इसकी समझ अपन जरूर रखते है। इसलिए कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त अभियान’ को ग्राउंड लेवल पर सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले प्रशांत किशोर को प्रधानमंत्री मोदी के भेदिये के रूप में ही कांग्रेस को देखना चाहिए। गांधी परिवार को विश्वास में लेकर प्रशांत किशोर कांग्रेस में सक्रिय भले ही हो जाएं, लेकिन किसी नेता जैसा सम्मान मिलना कांग्रेस की राजनीतिक परंपरा में संभव नहीं है। वैसे भी, न तो मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना अभी पूरा हुआ है, और न ही बीजेपी व मोदी से प्रशांत के रिश्ते अभी पूरी तरह खत्म हुए हैं। एक तो प्रशांत किशोर वे राजनेता नहीं है, फिर प्रधानमंत्री मोदी व बीजेपी के आला नेताओं के निजी संपर्क में वे अभी भी हैं, साथ ही कांग्रेस के कार्यकर्ताओं व नेताओं से उनका संवाद का रिश्ता भी नहीं है, इसलिए कांग्रेस में प्रशांत की राजनेता जैसी भूमिका की स्वीकारोक्ति और सम्मान मिलना तो दूर, नेताओं द्वारा उनकी बात मानना भी संभव नहीं है।
जिस तरह किसी अभिनेता के राजनीति में बड़े से बड़े पद पर आने के बावजूद उसकी पब्लिक अप्रोच व सोच राजनीतिक हो ही नहीं पाती, वही हाल प्रशांत का है। फिर भी राहुल गांधी की मेहरबानी से कांग्रेस में अगर उनकी भूमिका किसी राजनेता जैसी बन जाती है, तो निश्चित तौर से वे असरदार तो साबित हो सकते हैं, लेकिन केवल चुनावी रणनीति बनाने तक ही उन्हें सीमित रहना पड़ेगा। अगर पार्टी को पुनर्जीवित करने का सपना पालकर वे अपना राजनीतिक अवतार सफल बनाने की कोशिश में हैं, तो उनका यह सपना ध्वस्त होना भी संभव है। क्योंकि जनसेवा के प्रति उदासीन कांग्रेस के कार्यकर्ता और निराशा भाव को प्राप्त हो चुकी पूरी पार्टी में पैदा हुआ आलस्य एवं सिफारिशी तरीकों से आगे बढक़र पार्टी में मजबूत हो चुके पदाधिकारी व नेता, प्रशांत किशोर के लिए एक मजबूत चुनौती साबित होंगे।
वैसे, कांग्रेस पार्टी के बुरे चुनावी प्रदर्शन व उससे भी बुरे नतीजों से जो कुछ भी सामने दिख रहा है, समस्या केवल वहीं नहीं बल्कि उसके अलावा हैं, जिसे प्रशांत किशोर समझ तो सकते हैं, लेकिन सुलझाना आसान नहीं है। देखा जाए तो, प्रशांत किशोर एक प्रैक्टिकल अप्रोच के तहत काम करते है, जिनकी अब तक की सफलता सिर्फ सत्ता की तलाश और उसके लिए चुनाव जीतने में ही नीहित है। लेकिन प्रशांत की इस व्यावहारिक अर्थात प्रैक्टिकल राजनीति के लिए कांग्रेस को अपनी नीतियों, परंपराओं, संस्कृति एवं सिद्धांतों से समझौता करना होगा, जो कांग्रेस, कांग्रेसियों व गांधी परिवार के लिए कितना संभव होगा, यह भी फिलहाल नहीं कहा जा सकता। हालांकि, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, नीतीश कुमार की जनता दल युनाइटेड़, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, जगन मोहन रेड्डी की वायएसआर कांग्रेस, एम के स्टालिन की डीएमके और नरेंदेर मोदी की बीजेपी सहित कुल 9 पार्टियों के साथ काम करके कांग्रेस को कमजोर करनेवाले प्रशांत किशोर कांग्रेस की समस्या को समझते हैं, लेकिन वे इसे सुलझाएंगे, इसमें शक है। क्योंकि उनका वास्तविक मिशन कुछ और भी हो सकता है।
नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत अभियान’ के अगुआ रहे प्रशांत किशोर को कांग्रेस पार्टी में नीति निर्माण व संगठन सुधार की भूमिका में शामिल करना बची खुची कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। प्रशांत किशोर की कोशिशों से साफ लग रहा है कि वे कांग्रेस में अहमद पटेल की खाली फ्रेम में अपनी तस्वीर फिट करने की कोशिश में हैं, क्योंकि वही एक मात्र ऐसा पद है, जहां वे अन्य प्रादेशिक व छोटे राजनीतिक दलों तथा कांग्रेस के मध्यस्थ के रुप में अपनी जगह बना सकते है। लेकिन कोई जरुरी नहीं कि वे अपनी इस भूमिका में सफल होंगे, क्योंकि सवाल प्रशांत किशोर की मोदी से जुडी निष्ठा का है। देश की राजनीतिक तस्वीर साफ है कि अगले दशक भर तक तो देश में सत्ता निश्चित रूप से उन्हीं नरेन्द्र मोदी के हाथ में रहनी है, जिनसे प्रशांत किशोर के रिश्ते अभी भी अटूट अपनत्व से भरे हैं, तो ऐसे में कांग्रेस, कांग्रेसियों और गांधी परिवार को ही नहीं कांग्रेस के वैचारिक रुप से जिंदा नेताओं को भी प्रशांत किशोर के कांग्रेसी रंग में रंगे जाने को रंगा सियार के रुप में ही देखना चाहिए, क्योंकि नरेन्द्र मोदी का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है। तो फिर वह सपना पूरा करने के लिए कांग्रेस को संकट में डालने वाले प्रशांत किशोर कांग्रेस के संकटमोचक कैसे हो सकते है?
*(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)*