कर्नाटक में भाजपा शायद 2013 वाली गलती दोबारा ना दोहराए
कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलों और अपने पक्ष में उठती आवाजों के बीच मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बुधवार को अपने समर्थकों और शुभचिंतकों से अपील की कि वे किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन या अनुशासनहीनता में शामिल न हों जो भाजपा के लिए अपमानजनक हो या उसे शर्मिदा करे। 78 वर्षीय वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी उनके लिए मां की तरह है।येदियुरप्पा ने ट्वीट कर कहा, ‘मुझे भाजपा का वफादार कार्यकर्ता होने का सौभाग्य मिला है। नैतिकता और व्यवहार के उच्चतम मानकों के साथ पार्टी की सेवा करना मेरा परम सम्मान है। मैं सभी से पार्टी की परंपरा के अनुसार कार्य करने और विरोध या अनुशासनहीनता में शामिल नहीं होने का आग्रह करता हूं जो पार्टी के लिए अपमानजनक और शर्मनाक हो। ‘कन्नड़ में ट्वीट कर मुख्यमंत्री ने समर्थकों से आगे कहा कि वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रमों के आधार पर वे न तो उनके समर्थन में बयान दें और न ही विरोध प्रदर्शनों में शामिल हों।बहरहाल येदियुरप्पा के इस बयान से संकेत मिल रहे हैं कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने का फैसला कर लिया है । येदियुरप्पा ने भाजपा आलाकमान के फैसले का पालन करने के साथ ही लोगों से अपील की है। उन्होंने कहा कि पार्टी ने 78 साल की उम्र पार करने के बावजूद मेरे काम की सराहना करते हुए मुझे मौका दिया । आगे भाजपा अध्यक्ष का जो निर्देश आएगा, उसके आधार पर नया काम शुरू कर दिया जाएगा । दरअसल, 26 जुलाई को येदियुरप्पा सीएम के तौर पर अपने चौथे कार्यकाल के दो साल पूरे कर लेंगे. इस दिन एक कार्यक्रम की घोषणा की गई है, जिसके बाद माना जा रहा है कि येदियुरप्पा सीएम पद से इस्तीफा दे सकते हैं । लेकिन, कर्नाटक में लगातार चढ़ रहे सियासी पारे के बीच मुख्यमंत्री येदियुरप्पा बेफिक्र ही नजर आते हैं । खबरें सामने आई हैं कि बीएस येदियुरप्पा आगामी 25 जुलाई को भाजपा के सभी विधायकों के साथ रात्रि भोज करने वाले हैं । माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान अपना कोई फैसला सुनाए, इससे पहले येदियुरप्पा शक्ति प्रदर्शन के सहारे अपने दावे को मजबूती के साथ पेश करने के लिए आखिरी हथियार के तौर पर इस डिनर डिप्लोमेसी का सहारा लेने वाले हैं । वहीं, लिंगायत समुदाय के प्रमुख संतों की ओर से चेतावनी दी गई है कि येदियुरप्पा को उनका ये कार्यकाल पूरा करने दिया जाए । सिद्धगंगा मठ के श्री सिद्धलिंग स्वामी के नेतृत्व में संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात की है। कर्नाटक में 600 से अधिक मठ हैं, इन मठों का सीधा प्रभाव 35% आबादी पर है। यानी सरकार तय करने में इनकी भूमिका अहम हैं। येदियुरप्पा लगातार इन मठों को बढ़ावा देते आए हैं। येदियुरप्पा ने भी अपने हालिया बयान में पार्टी आलाकमान के हर फैसले को मानने की बात कही है । लेकिन, ऐसा लग नहीं रहा है कि वो बढ़ती उम्र के बावजूद इतनी आसानी से सीएम की कुर्सी छोड़ने के लिए हामी भर देंगे । भाजपा किसी भी हाल में उसे सत्ता में लाने वाले लिंगायत समुदाय में कोई गलत संदेश देने का रिस्क नहीं उठा पाएगी ।
वैसे, 2008 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही कई बार येदियुरप्पा को हटाने की मांग होती रही है ।2011 में कोयला खनन मामले में नाम आने के बाद येदियुरप्पा को ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था । लेकिन, येदियुरप्पा के इस्तीफे से लिंगायत समुदाय की नाराजगी सामने आई थी । फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने पर उन्होंने भाजपा से किनारा कर अपनी नई पार्टी बना ली थी. 2013 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी के लिए इतने वोट पा लिए थे कि भाजपा सत्ता में नहीं आ सकी थी। जिसके बाद 2014 में मजबूरन भाजपा को उन्हें पार्टी में वापस लेना पड़ा था ।वहीं, 2019 में ‘ऑपरेशन लोटस’ के सहारे भाजपा को फिर से सत्ता में लाने वाले येदियुरप्पा ही रहे हैं ।वहीं, राज्य की 100 से ज्यादा विधानसभा सीटों के साथ पड़ोसी राज्यों में भी लिंगायत समुदाय का खासा प्रभाव है । येदियुरप्पा का इस समुदाय पर मजबूत पकड़ उन्हें सीएम पद के लिए ताकत देती है । इस स्थिति में भाजपा नए नेताओं को आगे बढ़ाने पर विचार तो कर सकती है. लेकिन, बिना येदियुरप्पा की मंजूरी के शायद ही वो कोई कदम बढ़ा सके ।वैसे, 2013 से 2021 तक में बहुत सी चीजें बदल गई हैं । 78 साल के येदियुरप्पा अब फिर से अपनी अलग पार्टी बनाकर नए सिरे से शुरुआत शायद ही करना चाहेंगे । हालांकि येदियुरप्पा जानते हैं कि उनके पास पद छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन इस प्रदर्शन के जरिए अपने दोनों बेटों भाजपा उपाध्यक्ष विजयेंद्र और शिवमोगा सांसद बीवाई राघवेंद्र को उच्च पद दिलवाना चाहते हैं। दिल्ली में उन्होंने नेतृत्व के सामने एक बेटे को डिप्टी सीएम और दूसरे को केंद्रीय मंत्री बनाने के लिए माहौल बनाया था, लेकिन सफल नहीं हुए। माना जा सकता है कि भाजपा के पास अभी भी लिंगायत समुदाय में पकड़ रखने वाला येदियुरप्पा के कद का कोई नेता भले न हो । लेकिन, पार्टी के पास नेताओं की एक लंबी लिस्ट है, जो लिंगायत समुदाय के नेता के तौर पर जाने जाते हैं । इनमें से कई नाम येदियुरप्पा के करीबी भी माने जाते हैं ।
माना जा रहा है कि येदियुरप्पा पर फैसला आने के बाद राज्य को नए मुख्यमंत्री के साथ ही नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिल सकता है । अन्य राज्यों की तरह यहां भी भाजपा आलाकमान चौंकाने वाला फैसला कर सकता है ।कयास लगाए जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद पर वोक्कालिंगा समुदाय के नेता को तरजीह दी जाएगी । वहीं, प्रदेश अध्यक्ष पद का दायित्व लिंगायत समुदाय के किसी नेता को सौंपा जा सकता है । वहीं, येदियुरप्पा अपनी उम्र के हिसाब से किसी प्रदेश के राज्यपाल बनकर नई जिम्मेदारी संभाल सकते हैं ।लेकिन, कर्नाटक में भाजपा का रिस्क लेने वाला फैसला पूरी तरह से येदियुरप्पा की हामी पर निर्भर करता है । दूसरी तरफ भाजपा से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक अगर येदियुरप्पा इस लड़ाई को लिंगायत सम्मान से जोड़ देते हैं तो केंद्रीय नेतृत्व को पीछे हटना होगा। राज्य में इनकी आबादी 18% है। येदियुरप्पा इस समुदाय के सर्वमान्य नेता हैं। कर्नाटक में सत्ता की चाभी लिंगायत या वोक्कालिगा के हाथ में ही रहती है। जनता दल (एस) के कुमारस्वामी वोक्कालिगा समुदाय के नेता हैं। राज्य में इस समुदाय की आबादी 12% है। दूसरी तरफ, डीके शिवकुमार व पूर्व सीएम सिद्धारमैया के बीच कलह के मद्देनजर कांग्रेस अब लिंगायतों को महत्व देने पर विचार कर रही है।इसी कारण येदियुरप्पा को भाजपा यूं ही बिना सम्मानजनक विदाई दिए नहीं हटा सकती है।
अशोक भाटिया,स्वतंत्र पत्रकार