हाल के समाचारों के अनुसार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत-पाक संबंधों में अस्थिरता के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया है। यह बात उस समय की है जब इमरान खान दो दिवसीय ‘मध्य-दक्षिण एशिया सम्मेलन’ में भाग लेने के लिए उज्बेकिस्तान में थे , जिसमें अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और रूस, जापान और यूएस समेत कई अन्य देशों के उच्च पदस्थ नेताओं ने भी भाग लिया था ।पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ने एक समाचार एजेंसी से कहा, “क्या बिना स्वामित्व की भावना दिखाए बातचीत और आतंक साथ-साथ चल सकते हैं?’ इस पर इमरान खान ने भारत और पाकिस्तान के बीच दुश्मनी के लिए आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया था ।
दरअसल पाकिस्तान में परोक्ष रूप से शासन चलाने वाली पाकिस्तानी सेना कश्मीर मुद्दे पर इमरान सरकार पर दबाव बनाए रखती है । जिसकी वजह से इमरान खान को मजबूरी में कश्मीर राग छेड़ते रहना पड़ता है । वहीं, इमरान खान का भारत से बातचीत में रुकावट के लिए आरएसएस को जिम्मेदार बताना उनके एजेंडा को सूट करता है । हिंदूवादी संगठन आरएसएस के सहारे मोदी सरकार का डर दिखाकर इमरान खान पाकिस्तानी अवाम के बीच अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखना चाहते हैं । मोदी सरकार की बात करें, तो वो पहले ही स्थिति स्पष्ट कर चुकी है कि आतंकवाद पर रोक के बिना कुछ नहीं हो सकता है । इस स्थिति में पाकिस्तान के सामने मोदी सरकार पर आरोप लगाने का कोई फायदा नहीं है ।कश्मीर को लेकर आरोप लगाने के लिए कोई तो चाहिए ही, तो पाकिस्तान ने अब आरएसएस को लेकर जहर उगलना शुरू कर दिया है । आरएसएस का डर दिखाकर पाकिस्तान मुस्लिमों का मसीहा बनने की कोशिश करता है । इस वजह से पाकिस्तान को मुस्लिम देशों से आर्थिक मदद भी आसानी से मिल जाती है.
वैसे, आरएसएस की ही विचारधारा वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की व्यापक कवायद की थी । लेकिन, उसके बाद करगिल में क्या हुआ, ये सबके सामने है. भारत के साथ बिगड़े हालातों की असल वजह पाकिस्तान की अपनी हरकते हैं । इसका आरएसएस की विचारधारा से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है । भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वाला पाकिस्तान दर्जनों बार बेनकाब हो चुका है । लेकिन, खुद को ही आतंकवाद से पीड़ित बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता है । ताशकंद में हुए सम्मेलन में भी इमरान खान कहते नजर आए कि तालिबान की वजह से 15 सालों में पाकिस्तान में 70,000 लोगों ने जान गंवाई है ।
लेकिन, इसी तालिबान के बारे में सवाल पूछे जाने पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की जबान पर ताला पड़ जाता है । दरअसल, उज्बेकिस्तान के दो दिवसीय दौरे पर गए इमरान खान से न्यूज एजेंसी एएनआई के पत्रकार ने भारत के परिप्रेक्ष्य से सवाल पूछा कि क्या बातचीत और आतंकवाद एक साथ चल सकते हैं. जिसके जवाब में इमरान खान ने कहा कि भारत से तो हम कह सकते हैं कि कितनी देर से इंतजार कर रहे हैं कि सिविलाइज्ड हम साए बनकर रहें । लेकिन, क्या करें आरएसएस की विचारधारा रास्ते में आ गई है ।वहीं, तालिबान को लेकर पूछे गए सवाल पर इमरान खान को चुप्पी साध भागना ठीक लगा. वैसे, दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकियों को पालने वाला पाकिस्तान ऐसी बातें करता है, तो अनायास हंसी आ जाती है । कश्मीर में आतंकियों के सहारे अस्थिरता और अराजकता को बढ़ावा देने वाला पाकिस्तान दर्जनों बार बेनकाब हो चुका है ।
पाकिस्तान और तालिबान के करीबी रिश्ते किसी से छिपे हुए नही हैं । पाकिस्तान लंबे समय से तालिबानी लड़ाकों का पनाहगार बना हुआ है । ये सोचने वाली बात है कि अगर ऐसा नहीं है, तो तालिबान अपने फरमान में लड़कियों और महिलाओं को पाकिस्तान ले जाने की बात किस हैसियत से कर रहा है? आखिर कैसे पाकिस्तान में अफगान राजदूत की बेटी का सरेआम अपहरण हो जाता है? पाकिस्तान से तालिबान के संबंधों की गवाही देने के लिए क्या ये सबूत पर्याप्त नही हैं । तालिबान के साथ अपने संबंधों को इमरान खान नकारने की भरपूर कोशिशें करते हैं । लेकिन, एक देश के तौर पर उनकी हरकतें पाकिस्तान की सच्चाई बाहर ले ही आती हैं । खुद को आतंकियों से जूझ रहे देश के तौर पर पेश करने वाला पाकिस्तान अपनी इन्ही हरकतों की वजह से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है ।
भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में पहले के वर्षों की तरह माहौल बिगाड़ने वाली हरकतों पर बड़े स्तर पर रोक लगाई । आतंकी घुसपैठ से लेकर अलगाववादी नेताओं के सहारे कश्मीर का माहौल खराब करने की पाकिस्तानी कोशिशों को मोदी सरकार ने बेपटरी कर दिया. नरेंद्र मोदी सरकार इतने पर ही नहीं रुकी, कश्मीर में आतंकी हमलों के जवाब में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने का संदेश भी दे आई । मोदी सरकार ने पहले की सरकारों की तरह पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया अपनाने की जगह सख्त रुख अख्तियार किया । भारत सरकार ने तय कर लिया कि पाकिस्तान से बातचीत तभी शुरू हो सकती है, जब आतंकवाद पर रोक लगे. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद पाकिस्तान ने दुनिया के सभी बड़े मंचों पर आवाज उठाई । लेकिन, हर जगह उसे यही जवाब मिला कि ये भारत का आंतरिक मामला है ।
वहीं, कश्मीर मामले पर पाकिस्तान के साथ सुर में सुर मिलाने वाले मलेशिया को भी मोदी सरकार ने सबक सिखाया । मोदी सरकार ने मलेशिया से आयात होने वाले खाद्य तेल पर रोक लगा दी । जिससे मलेशिया की आर्थिक स्थिति पर काफी असर पड़ रहा है । कश्मीर के नाम पर हर दरवाजे को खटखटाने के बाद मोदी सरकार की नीति के आगे मजबूरन पाकिस्तान को झुकना पड़ा । हालांकि, वह अभी भी गाहे-बगाहे कश्मीर राग अलापता रहता है । लेकिन, उसके कश्मीर राग में अब पहले जैसा दम नहीं बचा है । पाकिस्तान के अनुसार, भारत के साथ बातचीत शुरू करने के लिए सबसे पहले कश्मीर में धारा 370 को फिर से लागू करना होगा । जो मोदी सरकार के कार्यकाल में होता नजर नहीं आ रहा है. इस स्थिति में पाकिस्तान के साथ वार्ता शुरू होना नामुमकिन नजर आता है ।
अशोक भाटिया,
स्वतंत्र पत्रकार