देश में एक बार फिर जासूसी कांड को लेकर बवाल मचा हुआ है ।सोशल मीडिया से लेकर संसद तक इस मुद्दे की गूंज सुनाई दे रही है । दरअसल वॉशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन अखबार के दावे के मुताबिक देश में 40 से ज्यादा पत्रकार, तीन प्रमुख विपक्षी नेताओं, एक संवैधानिक प्राधिकारी, नरेंद्र मोदी सरकार में दो पदासीन मंत्री, सुरक्षा संगठनों के वर्तमान और पूर्व प्रमुख एवं अधिकारी और बड़ी संख्या में कारोबारियों की जासूसी की गई । देश में जासूसी कांड की कथा नई नहीं है । राजनीति और जासूसी या फोन टैपिंग का रिश्ता बहुत पुराना है. इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सांसद, उद्योगपति और सिनेमाई जगत के लोगों के नाम पहले भी आ चुके हैं ।द गार्जियन और वॉशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट के जरिए आरोप लगाया है कि दुनिया की कई सरकारें एक खास पेगासस नाम के सॉफ्टवेयर के जरिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बड़े वकीलों समेत कई बड़ी हस्तियों की जासूसी करवा रही हैं, जिसमें भारत भी शामिल है । भारत सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है। मानसून सत्र की शुरुआत के दिन संसद भवन से निकलते हुए राहुल गांधी ने सांसद रवनीत बिट्टू से जासूसी कांड को लेकर रणनीति पर बात की जबकि शिवसेना भी सरकार को घेर रही है । शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि ये देश की सुरक्षा को लेकर चिंता पैदा करने वाली घटना है. अगर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का फोन भी टैप हो रहा हो तो हैरानी की बात नहीं. वहीं सरकार ने जासूसी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है ।
सरकारों पर जासूसी और फोन टेपिंग के आरोप कोई नए नहीं हैं। ऐसा पहले भी कई बार हुआ है। पाठक जानते ही होंगे कि 1988 में कर्नाटक में फोन टेपिंग विवाद छा गया था। उस समय जनता पार्टी के करिश्माई नेता रामकृष्ण हेगड़े मुख्यमंत्री हुआ करते थे। गैर कांग्रेसी खेमे में उन्हें संभावित पी.एम. पद के उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा था। उन पर इस तरह के आरोप लगे थे कि उन्होंने 51 राजनेताओं के फोन टेपिंग के आदेश दिए थे। यह मामला संसद तक पहुंचा तो हेगड़े को इस्तीफा देना पड़ा था।प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी पर भी विपक्षी नेताओं की जासूसी के आरोप लगे थे। प्रधानमंत्री स्वर्गीय चन्द्रशेखर पर भी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जासूसी करने के आरोप लगे थे। 2007 में जनता दल (यू) नेता नीतीश कुमार का फोन टेप किया गया था। 2008 में सीपीएम नेता प्रकाश करात का फोन टेप किया गया था, ऐसा भारतीय अमेरिका परमाणु समझौते और संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी नेताओं की रणनीति का पता लगाने के लिए किया गया था। 2009 में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह के बीच एक कथित वार्ता सामने आई थी। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी ने अपने फोन का टेप किए जाने का मामला उठाया था। मनमोहन सिंह शासनकाल में ही पी.सी. चिदम्बरम पर प्रणव मुखर्जी समेत अन्य मंत्रियों की जासूसी कराने का आरोप लगा था। 2013 में भाजपा नेता स्वर्गीय अरुण जेटली के फोन टेपिंग मामले में 4 लोगों पर मुकद्दमा चला। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तक अपने ही मंत्रियों और विधायकों के फोन टेप कराने के आरोप लग रहे हैं।
केन्द्र की मोदी सरकार ने जासूसी कराने के सभी आरोपों को निराधार बताया है और संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है जो अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार के रूप में निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस प्रतिबद्धता को आगे बढ़ाते हुए व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 और सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 को भी पेश किया गया है ताकि व्यक्तिगत डाटा की रक्षा की जा सके। सरकार का कहना है कि गार्जियन अखबार में प्रकाशित न्यूज आर्टिकल से कुछ भी साबित नहीं होता। वास्तव में पेगासस को सरकार के साथ जोड़ने के पहले भी प्रयास हुए हैं जो कि विफल रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि को खराब करने के लिए देश विरोधी ताकतें विदेशी तत्वों से मिलकर साजिशें रचते रहते हैं। हाल ही में किसान आंदोलन और सीसीए के खिलाफ आंदोलन को जिस ढंग से अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर प्रचारित किया गया, उसमें प्रधानमंत्री को बदनाम करने की साजिशें भी शामिल थी।
वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार काफी मजबूत है, उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं है तो फिर अपनों या दूसरों की जासूसी कराने या फोन हेक कराने का आरोप एक फेक न्यूज ही लगता है। जब-जब भी ऐसे विवाद होते हैं तब-तब नियमों और इसके उद्देश्य को लेकर बहस भी होती रही है। इसे मुख्य तौर पर निजता के अधिकार के हनन के तौर पर देखा जाता है, वहीं दूसरी ओर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा पर जन सुरक्षा की दृष्टि से जरूरी बताया जाता है। अंग्रेजों के जमाने में बने 1885 के टेलीग्राफ कानून में कई बार संशोधन हुए। केन्द्र और राज्य सरकारों को इंडियन टेलीग्राफ संशोधन नियम 2007 के तहत फोन टैपिंग कराने का अधिकार मिला है। इसके तहत कहा गया है कि अगर किसी लॉ एनफोर्समैंट एजैंसी को लगता है कि जन सुरक्षा या राष्ट्रीय हित में फोन टैप करने की जरूरत है तो उस हालात में फोन कॉल रिकार्ड की जा सकती है। फोन टैपिंग या जासूसी करवाने के लिए अब केन्द्र या राज्य सरकार के गृह सचिव स्तर के अधिकारी से इजाजत लेनी होती है। यह स्वीकृति 60 दिनों के लिए मान्य होती है और विशेष परिस्थितियों में 180 दिन से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता। फिलहाल एक बार फिर जासूसी और फोन टैपिंग का ‘जिन्न’ बोतल से बाहर आ गया है। हंगामा तो जरूर होगा लेकिन कुछ दिन बाद जिन्न फिर बोतल के भीतर चला जायेगा। क्योंकि ऐसे शगूफों का कोई असर सरकार पर नहीं पड़ने वाला।
अशोक भाटिया,स्वतंत्र पत्रकार