‘जंक फूड’ के लोभ में न फंसकर स्वदेशी और ताजा अन्न ग्रहण करें और स्वस्थ रहें ! – वैद्य सुविनय दामले
मुंबई :जंक फूड’ को आयुर्वेद में ‘विरुद्ध अन्न’ कहा गया है । शरबत, नारियल पानी जैसे भारतीय पेय पीने के स्थान पर स्वास्थ्य हेतु हानिकारक कोल्डड्रिंंक्स के लोभ में हम फंस जाते है । मैगी, बिस्किट जैसे अन्य विविध पैकबंद पदार्थों के वेष्टन पर प्रोटीन, कैलरी इत्यादि अनेक उत्तम घटक होने का दावा विदेशी और देशी प्रतिष्ठान करते है; परंतु यह सत्य नहीं है । विविध आकर्षक पद्धति से ‘जंक फूड’ के विज्ञापन कर जनता को भ्रमित किया जाता है । सरकार को इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाना चाहिए । ‘जंक फूड’ देशी हो अथवा विदेशी हो, भारतीयों को उसका त्याग करना चाहिए । आयुर्वेद में बताए अनुसार जिस अन्न पर वायु, सूर्यप्रकाश और चंद्रप्रकाश का स्पर्श अथवा संपर्क हुआ हो, वह अन्न ही खाना चाहिए । स्वास्थ्य हेतु हानिकारक ‘जंक फूड’ के लोभ में न फंसकर स्वदेशी और ताजा अन्न खाकर स्वस्थ रहें, ऐसा आवाहन ‘आयुष मंत्रालय’ के राष्ट्रीय गुरु वैद्य सुविनय दामले ने किया । वे ‘राष्ट्रीय चिकित्सक दिन’ के निमित्त ‘आरोग्य साहाय्य समिति’ द्वारा आयोजित ‘विदेशी जंक फूड : पोषण या आर्थिक शोषण ?’ इस ऑनलाइन विशेष संवाद में बोल रहे थे । इस कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हिन्दू जनजागृति समिति के जालस्थल Hindujagruti.org, यू-ट्यूब और ट्विटर द्वारा 3,033 लोगों ने देखा ।
विदेशी कंपनी ‘नेस्ले’ का सत्य बताते हुए उत्तरप्रदेश के ‘भूतपूर्व सैनिक कल्याण संगठन’ के संगठन मंत्री इन्द्रसेन सिंह ने कहा कि, प्रत्येक खाद्यपदार्थ की गुणवत्ता जांचकर उसकी जानकारी जनता के समक्ष रखने के उपरांत ही उसे बिक्री की अनुमति देनी चाहिए; परंतु अभी ऐसा नहीं किया जाता । अनेक प्रतिष्ठानों के पास ‘पैकबंद’ भोजन और पानी के विषय में उचित लाइसेंस न होते हुए भी उन्हें देश में व्यवसाय करने दिया जा रहा है । ‘एफएसएसएआय’ और ‘एफडीओ’ जैसी संस्थाएं जब तक निष्पक्ष और भ्रष्टाचार मुक्त कार्य नहीं करेंगी; तब तक भारतीयों को पौष्टिक भोजन मिलना लगभग असंभव है ।
इस समय खाद्य और पोषण विशेषज्ञ श्रीमती मीनाक्षी शरण ने कहा कि, जंक अर्थात कचरा ! जिस अन्न में कोई पोषकतत्त्व नहीं होते, उसे ‘जंक फूड’ कहा जाता है । ‘जंक फूड’ खाना, स्वयं के पेट में कचरा भरना है । इससे शरीर का पोषण नहीं; कुपोषण होता है । इस श्रेणी में सभी बेकरी, हवाबंद पदार्थ और पेय सम्मिलित है । इस समय ‘आरोग्य साहाय्य समिति’ की समन्वयक अश्विनी कुलकर्णी ने कहा कि, प्रशासन की उदासीनता के कारण पूरे देश में सभी ओर निकृष्ट स्तर के खाद्यपदार्थ ही उपलब्ध हैं । अन्न में मिलावट प्राप्त होने पर उसके विरोध में कहां परिवाद (शिकायत) करनी है, यह सामान्य नागरिकों को ज्ञात नहीं होता । ‘अन्न में मिलावट ‘ यह विषय शालेय पाठ्यक्रम से विद्यार्थियों को सिखाना चाहिए, ऐसी हमारी पहले से ही मांग रही है । सर्वोच्च न्यायालय के आदेश उपरांत भी देश के किसी भी राज्य के आयुक्त ने दूध और अन्न की मिलावट के विषय में कार्यशाला आयोजित नहीं की । इसके विरोध में हम न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर रहे हैं ।