Home समसमायिकीप्रसंगवश स्मृति शेष : जब सरोज त्रिपाठी ने सेंट जॉर्ज अस्पताल में मनाया गायिका का जन्म दिन– संजीव शुक्ल

स्मृति शेष : जब सरोज त्रिपाठी ने सेंट जॉर्ज अस्पताल में मनाया गायिका का जन्म दिन– संजीव शुक्ल

by zadmin

 मुंबई :, मैंने जब हिंदी पत्रकारिता  शुरू की तब मैंने पत्रकारिता का कोर्स नहीं किया था। पत्रकारिता  शुरू करने के करीब चार साल बाद मैंने पत्रकारिता का कोर्स  किया। मेरा मुंबई चौपाटी स्थित मशहूर विल्सन कॉलेज से ग्रेजुएशन  पूरा हो गया था और मैंने चर्चगेट के एक  लॉ कॉलेज में एडमिशन ले लिया और उसकी भी पढ़ाई शुरू कर दी। बाद में  मुझे एक दैनिक अख़बार ने मंत्रालय और पॉलिटिकल  बीट की जिम्मेदारी सौंपी थी। मैंने सोचा पत्रकारिता में अच्छी और लम्बी पारी के लिए पत्रकारिता का कोर्स कर लूँ।  मैंने इसके लिए मुंबई विश्वविद्यालय से जुड़े  गरवारे संस्थान में दाखिला लेने के लिए तय किया । इस कोर्स  के लिये तब ग्रेजुएशन में कम से कम द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण  होना अनिवार्य था। उसके बाद भी  एडमिशन उसी को मिलता जो  उस संस्थान द्वारा लिए गये  लिखित परीक्षा को  पास करता। मुंबई विश्वविद्यालय से सम्बद्ध  कालिना स्थित  इस संस्थान में दाखिले के लिये  ज़रूरी शर्तें पूरी  करने के कारण मेरा  चयन हो गया। हमारी तब वहां  ‘ पत्रकारिता के कानून ‘ विषय के लिए रविवार को क्लास होती थी वह क्लास सरोज त्रिपाठी जी लेते थे। मैं  उनसे बेबाकी से बात करता था। एक बार उन्होंने जब पढ़ाया कि ‘ पत्रकारों के लिए कोई अलग से अधिकार नहीं दिए गए हैं भारतीय संविधान ने जो अभिव्यक्ति की आज़ादी  भारतीय नागरिकों को दी है उसी के तहत  पत्रकार भी अपनी बात कहता है’ इस पर भी उनसे  तर्क हुआ  । ऐसे कई बार कुछ  मुद्दों,  ख़बरों पर तर्क  हो जाता।     मैंने पत्रकारिता का कोर्स प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर लिया। मुझे उस अखबार में ही स्वतंत्र रूप से लिखने का मौका वहां तबके  सिटी एडिटर  गंगाधर ढोबले  और तत्कालीन संपादक विश्वनाथ सचदेव के कारण  मिला। यह साल २००२ – ३ की बात होगी। एक दिन मैं  एनबीटी ऑफिस गया तो एक मशहूर  महिला गायिका की चर्चा जारी थी। उस  मशहूर कव्वाली गायिका की आर्थिक  हालत ख़राब थी। उसकी तबियत भी नाज़ुक  थी। उसको उपचार के लिये दक्षिण मुंबई के सेंट जॉर्ज अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सरोज त्रिपाठी जी  केक , मिठाई , नाश्ता वगैरह लेकर  सेंट जॉर्ज अस्पताल अन्य कई लोगों के साथ पहुंचे, मुझे भी साथ ले गये । वहां पर उनके हाथों केक कटवाया। वहीं पर उस मशहूर गायिका  का जन्मदिन मनाया गया। वह  गायिका इससे  भाव विह्वल हो गयी। मैंने जब  उस मशहूर गायिका से  व्यक्तिगत रूप से पूछा  कि कुछ कहना चाहेगी आप ? तो उस गायिका ने  कहा “‘ चमक रही है जो बिजली उसे नज़र में रखो, जो बुझ गया न उस चिराग की बात करो”। एक समय था उस खूबसूरत गायिका  से मिलने के लिए लोग  लाइन  लगाकर बेसब्री से  इंतज़ार करते थे। हम लोग  वहां से सरोज त्रिपाठी जी आदि  के साथ वापस आ गये। मेरे दिमाग में अगली स्टोरी उन मशहूर हस्तियों के बारे में करने के लिए आयी जो गुमनामी में दिन काट रहे थे और मैंने वह किया भी। उसी दौरान ही मैं महात्मा गांधी की हत्या के सरकारी गवाह कहे जाने वाले अंगद सिंह बिसेन एवं अन्य की स्टोरी संयुक्त रूप से की।  बिसेन जी गेटवे ऑफ़ इंडिया के  बगल में   होटल ताज के पास स्थित लिंडेन हाउस में रहते थे। बिसेन, पंडित जवाहर नेहरू के भी करीबी बताये जाते थे।    जैसे की  पहले भी बता चुका हूँ कि नवभारत टाइम्स में पहले मैं स्वतंत्र लेखन करता  था बाद में मेरी वहां  पर नियुक्त हुई थी । इस समय स्थानीय संपादक सचदेव जी सेवानिवृत्त हो गए थे और उनकी जो जिम्मेदारी थी वह किसी और महाशय को दे दी गयी थी। सरोज जी से वहां तब रोज़ ही मुलाकात होती रहती  थी। सरोज जी मुझसे  बहुत वरिष्ठ थे।  विमल मिश्र जी तब वहां सिटी एडिटर बने थे। सरोज जी के पास दूसरे पेज और ख़बरों की जिम्मेदारी थी। अमूमन रात साढ़े नौ बजे मुंबई एडिटोरियल की डेड लाइन होती थी और उसके बाद दिन भर के कार्य से छुट्टी हो जाती थी। कोई  अचानक बड़ी महत्वपूर्ण  घटना  घटित हो जाए या बड़ी महत्वपूर्ण  खबर आ जाये तो उसको अख़बार में जगह देनी होती थी इसके लिए रात ग्यारह बजे तक कुछ स्टाफ  निश्चित तौर पर ऑफिस में रुकता था । मैं स्वेच्छा से कई बार दी गयी  बीट से अलग किसी स्टोरी, आर्टिकल को पूरा करने के लिये  या ऑफिस से दी गयी ख़बरों को रात साढ़े नौ बजे के बाद  बनाते रहता था ताकि वह दूसरे दिन के पेज में उपयोग की जा  सके। इसमें  कई बार  खाली समय मिल जाता था। ऐसे समय में तरह -तरह  की बातों पर चर्चा होती थी।  सरोज जी की जानकारियां का पिटारा खुलता तो  कई बार  हंसी छूट जाती थी । एक बार  सरोज जी उनके नाम से जुड़ा एक  वाक्या बताया कि एक सरदार जी बार –  बार उनको ऑफिस में फ़ोन करते थे और कहते थे कि आप को एक कार्यक्रम में बुलाना  चाहता हूँ। आपको मुख्य अतिथि बनाना चाहता हूँ  तो एक बार मैंने कहा कि ठीक है लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं  पुरुष हूँ तो वह  सरदार जी मायूस हो गए, उनका फोन आना भी बंद हो गया। 
   अख़बार से  सेवानिवृत्त के बाद का जीवन बिता रहे सरोज त्रिपाठी जी मेरी विगत महीने फोन पर  बात हुई थी तो उन्होंने कहा कि लॉक डाउन ख़त्म हो जाने के बाद मिलते हैं। सोमवार 17 मई की सुबह को अस्पताल में 65वर्षीय सरोज त्रिपाठी जी  का स्वर्गवास  हो गया। भगवान  सरोज जी की आत्मा को शांति प्रदान करे। 

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