खरी-खरी
नदियों में बहते देखे इंसानी मुर्दे।
बाग़ खेत खलिहान सभी शमशान हो गये।।
कंधे मिले न चार मर गयी बूढ़ी धनिया।
होरी के मुर्दा सारे अरमान हो गये।।
एक महामारी ने ऐसा तांडव खेला।
मानवता के रिश्ते सब बेईमान हो गये।।
●अशोक वशिष्ठ
खरी-खरी
नदियों में बहते देखे इंसानी मुर्दे।
बाग़ खेत खलिहान सभी शमशान हो गये।।
कंधे मिले न चार मर गयी बूढ़ी धनिया।
होरी के मुर्दा सारे अरमान हो गये।।
एक महामारी ने ऐसा तांडव खेला।
मानवता के रिश्ते सब बेईमान हो गये।।
●अशोक वशिष्ठ