वक़्त मुश्किल है ज़रूर मगर गुज़र जाएगा,
मनहूस सा ये रोग हो कर बेअसर आएगा।
मुस्कराहट भरे दिन आएंगे फिर से वापस,
मातम-रूदन का ये सिलसिला ठहर जाएगा।
सच कि जो चले गए आएंगे नहीं लौट कर,
परंतु गहरा ज़ख़्म रफ़्ता रफ़्ता भर जाएगा।
चलो मिल के बसाएं उजड़े लोगों को दोबारा,
यक़ीनन उनका जीवन वापस संवर जाएगा।
किसको दोष दें और किसे ठहराएं क़सूरवार,
माफ़ कर दें वरना वो नामुराद मर जाएगा
असफल ही रहा जिसको करनी थी हिफ़ाज़त,
ये नामुराद मंज़र फिर से नहीं नज़र आएगा।
रूबरू होते रहे हैं हम हादसों से ज़िंदगी भर
ये एक और हादसा भी रुख़सत कर जाएगा।
गिर के फिर से उठना हमारी आदत रही है
अपनों को न बचा पाने का दर्द रह जाएगा।
दरख़्तों को काटते रहे, मारते रहे वन्य जीव
कभी सोचे न थे क़ुदरत ढा के क़हर जाएगा।
यूं ही चलते रहने का ही नाम तो है ज़िंदगी
यही सोच कर हर कोई दर्द से उबर जाएगा।
ज़िंदगी रंगमंच है हम सब है किरदार इसके
एहतियात बरतने का ये सबक़ देकर जाएगा।
हमारी भी ज़िद रही है हथियार न डालने की
ये जज़्बा ही देकर हमको नया सहर जाएगा।
-हरिगोविंद विश्वकर्मा