कुसुम अग्रवाल
इस बस्ती की खोली नंबर-13 में रोज की अपेक्षाकृत आज कुछ अधिक हलचल थी क्योंकि पार्वती आज बहुत खुश थी। वह बाजार से हल्की किंतु सुंदर लाल रंग की रेशमी साड़ी खरीद कर लाई थी।
आज का दिन उसके लिए खास था। या यूं भी कह सकते हैं कि भारत वर्ष की सभी नारियों के लिए ही खास था। आज कार्तिक मास की चौथ यानी करवा-चौथ, सुहागिनों का पर्व था।
पार्वती ने सुबह से कुछ खाया नहीं था। यहां तक कि पानी की बूंद भी हलक से नीचे नहीं उतारी थी। कुछ नहीं खाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी पर रोज पानी पीने की तो उसे भी आदत थी। खैर, कोई बात नहीं भारतीय स्त्रियां अपने पति परमेश्वर के लिए इतना कष्ट तो हंसते-हंसते सह लेती हैं।
शाम के 8 बजे थे। पार्वती ने नहा-धोकर नई लाल साड़ी पहन ली और थोड़ा शृंगार भी कर लिया। विशेष तौर पर मांग में गहरा लाल सिंदूर लगा लिया। सज-धज कर जब उसने दर्पण में देखा तो स्वयं से ही शरमा गई। वास्तव में आज वह रोज से अधिक सुंदर लग रही थी।
अरे बिटवा, देख तो डिब्बे में शक्कर है कि नहीं। आज कुछ मीठा जरूर बनेगा, पार्वती ने अपने बेटे गणेश से कहा।
गणेश वहीं बैठा-बैठा बोला, माई, डिब्बा बिल्कुल खाली है। अभी देखा था। भूख लगी थी, सोचा थोड़ी शक्कर ही फांक लूं।
जा, तू जाकर काका की दुकान से थोड़ी शक्कर ले आ, पार्वती ने गणेश को कहा और फिर आटे के डिब्बे में झांक कर देखा।
भगवान का शुक्र है, आटा तो है। वह बड़बड़ाई और फिर देखा कि गणेश अभी तक वहीं खड़ा है।
तनिक जल्दी कर, चांद निकलने से पहले-पहले खाना बनाना है।
माई पैसे दो, काका उधार देने से मना करता है, मुझे डांट कर भगा देगा। गणेश ने मुंह बनाते हुए कहा।
अच्छा ये ले दस रुपये। कहकर पार्वती में अपने ब्लाउज में रखे छोटे बटुए में से दस रुपए निकाल कर गणेश को दिए। फिर एक नजर बटुए में डाली। बहुत दिनों बाद आज उसके बटुए में पूरे एक हजार रुपए थे। वह आज ही वह मालकिन से पूरे महीने की पगार ले आई थी, खास त्योहार जो था।
पार्वती ने बाकी रुपये अपनी लोहे की पेटी में रखकर ताला लटका दिया और पेटी चारपाई के नीचे सरका कर चाबी अपने बटुए में रख ली।
गणेश शक्कर ले आया था। पार्वती खाना बनाने में लग गई। त्योहार के खाने के नाम पर आलू की रस वाली सब्जी और रोटी और मीठे के नाम पर दो रोटी की चूरी बनाकर शक्कर मिला ली गई थी।
माई, जोरों की भूख लगी है। कुछ खाने को दो ना। गणेश की भूख सब्जी रोटी की महक से उग्र हो गई थी।
पहले तेरे बापू को तो आने दे। आज करवा चौथ है। आज तो उन्हीं के नाम से सब बनाया है।
तुम तो रोज ही उन्हीं के नाम से बनाती हो। बापू-बापू की रट लगाए रखती हो जैसे हम तो कुछ है ही नहीं।
कैसे बोल रहा है? वह तेरे भी तो पिता हैं।
होंगे पिता, मैं नहीं मानता और मैं कहता हूं तू भी पति मत मान। रोज दारू पीकर आ जाते हैं और हंगामा करते हैं और तू है कि जो रूखा-सूखा होता है, सब उनके पेट में डाल देती है। काम के ना काज के, सौ मन अनाज के। कैसे पति-परमेश्वर हैं ये? क्या फर्ज निभाते हैं यह एक पति और पिता होने का?
एक जोरदार चांटा गणेश के गाल पर पड़ा और साथ ही पार्वती की आंखों में आंसू भी आ गए रोते-रोते वह बोली, मैं जानती हूं तुझे वह फूटी आंख नहीं सुहाते। आज त्योहार के दिन तो आग उगलना बंद कर.
देख रहा है ये सजधज, ये रौनक। पार्वती ने अपनी और इशारा करते हुए कहा, ये सब उनकी बदौलत है। मेरे लिए दुनिया के सभी गाजे-बाजे उन्हीं से हैं। चाहे कमाएं या न कमाएं, वह सुहाग हैं मेरे। उन्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?
और माई तुझे कुछ हो गया तो?
आदमी का कुछ नहीं बिगड़ता बिटवा। वह झट से दूसरी बिठा लेता है। यह सारी लाज-शर्म औरतों के लिए है। तूने देखा था न तेरे मौसा को। मौसी के बाहरवें तक का इंतज़ार नहीं किया और ले आए दूसरी।
पर माई वह मारते हैं तुम्हें। बुरी-बुरी गाली देते हैं। दूसरी औरतों के साथ हंसते-बोलते हैं। यह कैसा सुहाग है मां। गणेश ने पार्वती का कंधा पकड़कर उसे झिंझोड़ते हुए कहा।
गणेश की बात सुनकर एक क्षण तो पार्वती सन्न गई। फिर बोली, यह सब तो मैं मेरे नसीब में लिखा के लाई हूं। पर एक स्त्री के लिए सुहागिन होना ही सौभाग्य की बात है।
साड़ी के पल्लू से आंखों से बहते मोतियों को समेट कर गणेश से कहती है, जा गली के छोर से देखकर आ। चांद निकलने को है। आज तो तेरे बापू भी जल्दी घर आ जाएंगे। उन्हें पता है कि आज मैं उनके हाथ से अपना व्रत खोलूंगी। ये बोलकर पार्वती ने स्वयं को दिलासा दिया जबकि हकीकत उसका मन जानता था कि शंकर को उसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं और वह आज भी किसी अड्डे पर पड़़ा होगा।
पार्वती, ओ पार्वती, कहां मर गई? अचानक शंकर की आवाज कानों में पड़ी तो पार्वती चौंक गई। इससे पहले कि बह कुछ जवाब देती, शंकर खोली में प्रवेश कर चुका था।
पार्वती को सजी-धजी देखकर वह उसके पास गया और ठोड़ी से पकड़ कर उसका मुंह ऊपर उठाया और बोला, अरे वाह! छम्मक-छल्लो क्या बात है? आज तो पटाखा लग रही है। बोल कहां को जाएगी?
कहां जाऊंगी? क्या फालतू की बात करते हो जी। आज करवा चौथ है, इसलिए थोड़ा तैयार हो गई। गणेश चांद देखने गया है, पर मेरे चांद तो खुद ही चल कर मेरे पास आ गया। अब कहीं मत जाना। आज तो मैं आपके हाथों से ही जल ग्रहण करके व्रत खोलूंगी वरना भूखे ही रहूंगी।
अच्छा तो यह बात है तो चल पहले मुझे खुश कर। थोड़े नोट-पानी दे। तुझे पगार मिली होगी न। शंकर ने मौके का फायदा उठाने की नीयत से कहा।
नहीं दूंगी रुपए। हाड़-तोड़ मेहनत कर कमाए हैं। पूरा महीना क्या खाएंगे हम? तुम्हें दारू पिलाने को नहीं हैं वे रुपये। पार्वती ने बिदककर कहा और शंकर से दूर जाकर खड़ी हो गई।
क्या पैसे नहीं देगी? क्यों नहीं देगी? देख आज त्योहार है। झगड़ा मत कर आज के दिन। अगर आज के दिन तूने अपने सुहाग की बात नहीं मानी तो बहुत पछताएगी।
क्या करेगा तू? बोल। पार्वती ने गुस्से से कहा।
देख तूं मुझे उकसा मत। मैं किसी गाड़ी के नीचे आ कर मर जाऊंगा फिर रोती रहना तूं। याद है पहले भी तेरी इसी आदत के कारण मैं तुझे छोड़कर चला गया था। कितने ताने मारे थे तुझे लोगों ने। अब तू फिर वैसा ही कर रही है।
अब की बार तो मैं सीधा प्लेटफार्म पर जाकर किसी पटरी पर सो जाऊंगा। फिर ये सोलह शृंगार, ये नखरे, सब भूल जाएगी। पति के बिना कुछ नहीं है। देख बैठे-बिठाए मुसीबत मोल मत ले।
पार्वती की आंखों के आगे पिछली बरस के दृश्य घूमने लगे। तब भी ऐसे ही धमका कर शंकर ने उसे रुपये मांगे थे और मना करने पर उसे छोड़कर किसी मंदिर में जाकर कई दिनों तक पड़ा रहा था। वह तो भला हो पड़ोसियों का, जो उसे पहचानकर और समझा-बुझाकर घर ले आए थे वरना नाते रिश्तेदारों ने तो ‘दुहागिन’ कहकर उसका जीना ही हराम कर दिया था।
वह धीरे से उठी और बटुए में से चाबी निकालकर रुपये निकालने के लिए पेटी की ओर बढ़ी।
माई, चांद निकल आया है। जा जल्दी से जाकर पूजा कर ले।
फिर शंकर की ओर देखकर, मां आज बापू भी आ गए। अब तुझे पूरी रात भूखा नहीं रहना पड़ेगा। पिछली बार तो… कहकर गणेश ने शंकर की ओर देखा जो उसे आंखें तरेर रहा था।
फिर उसका ध्यान पार्वती की ओर गया जो अब तक पेटी से रुपये निकाल चुकी थी ।
माई, ये रुपये क्यों निकाले है? नहीं देने बापू को। हर बार ऐसा ही करती हो। अपनी हालत यो देख। दो वक्त की पूरी रोटी भी नहीं मिलती, ऊपर से कई घरों का काम।
नहीं माई, मैं ये पैसे नहीं देने दूंगा। कहकर गणेश ने अपनी मां के हाथों से रुपये छीन कर अपनी मुट्ठी में भींच लिए।
हरामखोर, जब देखो हम मियां-बीवी के बीच में कुछ कचर-पचर करता रहता है। आज नहीं छोडूंगा तुझे। कहकर शंकर ने गणेश को एक जोरदार थप्पड़ मारा।
पर गणेश को यह थप्पड़ जरा भी आहत नहीं कर सका। वह मजबूत हो चुका था।
वह फिर बोला-बड़े आए मियां-बीवी का हक जताने। मैं जानता नहीं क्या कैसे मियां हो तुम? नरक बना दिया है तुमने मेरी मां के जीवन को। मत आया करो यहां। सिर्फ पैसे लेने आती हो। बेशर्म! तुम जैसा बेगैरत इंसान मैंने आज तक नहीं देखा। चुल्लू भर पानी में डूब मरो।
देख, इस छछूंदर के बड़े पर निकल आए हैं आजकल। तू इसे समझा ले वरना जान से मार दूंगा इसे एक दिन। शंकर ने पार्वती को लाल-पीली आंखों से देखते हुए कहा।
मार के दिखाओ। बड़े आए मारने वाले। खिला ताे सकते नहीं, मारेंगे। गणेश ने फिर बिफर कर कहा।
आज नहीं छोडूंगा तुझे। कहकर शंकर ने गणेश को दबोच लिया और उसके मुंह पर हाथ रख कर बोला,
बोल, बोलेगा इतना बढ़-बढ़ के?
हां, बोलूंगा।
बोलेगा?
हां, बोलूंगा।
बोलेगा?
हां, हां।
और इसके साथ-साथ ही शंकर के हाथों का दबाव बढ़ता गया।
और अब गणेश चुप हो गया था, पर सदा के लिए।
यह देखकर शंकर के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
अब क्या होगा? पुलिस! जेल!
फिर पार्वती की ओर देख कर गिड़गिड़ाने लगा। मुझे बचा ले। देख, मुझे जेल हो जाएगी तो तू क्या करेगी? चल हम दोनों मिलकर लाश को कहीं ठिकाने लगा देते हैं। यह सब निशान मिटा कर ऐसा कह देते हैं कि अचानक ही हो गया सब कुछ। कुछ तो करना ही होगा।
लाश देखकर पार्वती सुन्न थी। वह कुछ नहीं बोली। उसकी आंखें पथरा गई थीं और होंठ बंद थे।
शंकर पार्वती के पास गया। उसे जोर से हिलाया और बोला।
बोलती क्यों नहीं? हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। इससे पहले किसी को पता चले कुछ न कुछ तो करना होगा। आज करवा चौथ है। अपना फर्ज निभा। बचा ले अपने सुहाग को जेल जाने से।
और फिर सिर पकड़कर फर्श पर बैठ गया।
अचानक पार्वती उठी और बड़ी द्रुत गति से खोली से बाहर निकल गई। शंकर विस्मित-सा उसे जाते देखता रहा पर रोक नहीं पाया।
कुछ ही देर बाद खोली नंबर 13 के बाहर काफी जमावड़ा था। शायद सबको इस घटना के बारे में पता चल गया था। पुलिस आ गई और शंकर को जेल हो गई।
आजकल खोली नंबर 13 में अक्सर औरतों का आना-जाना लगा रहता है क्योंकि अब उसमें बस्ती का नारी कल्याण केंद्र चल रहा है। वहां कई पार्वतियों को यह समझाया जाता है।
सिर्फ सुहागिन कहाने के लिए अन्याय एवं अत्याचार को सहना अब बंद करना होगा। दांपत्य जीवन में स्त्री का महत्व पुरुष के समकक्ष ही है। हमें यह बात समाज को भी समझानी होगी वरना कई गणेश यूं ही मरते रहेंगे