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खरी-खरी•••☆अशोक वशिष्ठ

by zadmin

● खरी-खरी••••••••••••••

साजन तड़पें शहर में, तड़प रही मैं गाँव।
कोरोना में लग गयी , यह ज़िंदगानी दाँव।।

यह ज़िंदगानी दाँव , चैन मैं किस विधि पाऊँ।

सजन न आते गाँव , शहर मैं कैसे जाऊँ।।

सास-ससुर की टहल, करत बीते है निस-दिन।

मज़बूरी में वहाँ , नौकरी कर रहे साजन ।।

••••••••••••••••••○☆अशोक वशिष्ठ 

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