तीतरों का ‘जयचन्द’
किसी बाजार में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था। उसके पास एक बड़ी-सी जालीवाली बक्से में बहुत सारे तीतर थे ..और एक छोटे से बक्से में सिर्फ एक तीतर को देख
किसी ग्राहक ने उससे पूछा एक तीतर कितने का है?
तो उसने जवाब दिया, एक तीतर की कीमत 40 रूपये है।
ग्राहक ने दूसरे बक्से में जो तन्हा तीतर था उसकी कीमत पूछी तो तीतर वाले ने जवाब दिया।
अव्वल तो मैं इसे बेचना ही नहीं चाहूंगा, लेकिन अगर आप लेने की जिद करोगे तो इसकी कीमत 500 रूपये होगी।
ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा, इसकी कीमत 500 रुपया क्यों ?
इस पर तीतर वाले का जवाब था, ये मेरा अपना पालतू तीतर है और दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है। ये चीख-पुकार करके दूसरे तीतरों को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे-समझे एक जगह जमा हो जाते हैं। फिर मैं आसानी से इन तीतरों का शिकार कर पाता हूँ। इसके बाद फंसाने वाले तीतर को उसके मनपसंद की खुराक दे देता हूँ, जिससे ये खुश हो जाता है। बस इस वजह से इसकी कीमत ज्यादा है!
बाजार में एक समझदार आदमी ने उस तीतर वाले को 500 रूपये देकर उस तीतर की सरे बाजार गर्दन मरोड़ दी!
किसी ने पूछा, आपने ऐसा क्यों किया?
उसका जवाब था, *ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं जो अपने मुनाफे के लिए अपने समाज को फंसाने का काम करे और अपने ही लोगो को धोखा देता दे…!
हमारे हिंदुओ में भी 500 रू वाले तीतर की तरह के बहुत लोग हैं, *जिन्हें हम सेक्युलर, लिबरल, वामपंथी-कम्युनिस्ट धर्मनिरपेक्ष इत्यादि विपक्षी- जातिवादी- परिवार वादी – राजनीतिक दलों के नाम से जानते हैं।
बोध कथा -तीतरों का ‘जयचन्द’
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