-कर्ण हिंदुस्तानी
हमारे देश में दो राजधानियां हमेशा चर्चा में रहतीं हैं, एक देश की राजधानी दिल्ली और दूसरी आर्थिक राजधानी मुंबई। इन दोनों राजधानियों में समानता यह है कि दोनों जगह उसको हटाओ -मुझे बिठाओ की राजनीति चलने लगी है।
केजरीवाल से शुरू करें तो केजरीवाल ने अपना आंदोलन शुरू किया था तब उन्होंने दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने की सोची भी नहीं थी। बाद में उन्हें राजनीति का कीड़ा काट गया और उन्होंने शीला हटाओ मुझे लाओ का नारा लगवाना शुरू कर दिया। इससे देश की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया। जनता की नब्ज को पकड़ो , उसकी भावनाओं से खेलो और बाद में खुद कुर्सी पर विराजमान हो जाओ। इसी तरह का खेल अब महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में भी शुरू है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने जिस तरह से सत्ताधारियों को हर मोर्चे पर घेरा हुआ है वह राजनीति की दृष्टि से भले ही ठीक हो लेकिन जन सामान्य के हित में नहीं है। जनता इस वक़्त आर्थिक तंगी से जूझ रही है और ऐसे में यदि महाराष्ट्र की सरकार गिर जाती है तो और भी हालात खराब हो जाने की संभावना है। सभी जानते हैं कि सत्यपाल सिंह के बाद परमबीर सिंह भी पुलिस की नौकरी पूर्ण करने के बाद किस राजनीतिक दल से जुड़ना चाहते हैं ? ऐसे में रिश्वतखोरी की बात का बतंगड़ बनाकर बे वजह सरकार को घेरा जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। महाराष्ट्र के विपक्षी दल को अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा। राज्य में कोरोना वेक्सीन की कमी महसूस होने लगी है , आक्सीजन के लिए दूसरे राज्यों की तरफ देखना पड़ रहा है। यह समय राजनीति से ऊपर उठकर जन सामान्य के लिए काम करने का है। उनको हटाओ हमको बिठाओ का यह वक़्त नहीं है। लोगों के मन में सत्ताधारी यदि जगह बनाने में नाकाम रहे हैं तो विपक्ष के लिए भी लोगों के मन में कोई ख़ास जगह नहीं है। कोरोना महामारी के बीच विपक्ष अपनी ढपली लेकर राग गाना चाहता है। जबकि जनहित के मुद्दे पर सरकार को घेरा ही नहीं गया। विधानसभा में अजीत पवार ने छाती ठोक कर कहा था कि अगला आदेश आने तक किसी भी बिजली काटी नहीं जाएगी। लेकिन धड़ाधड़ बिजली के कनेक्शन काटे जा रहे हैं। इस पर विपक्ष क्यों चुप है ? सामान्य जनता को ना सत्ताधारी कोई आधार दे रहे हैं ना विपक्ष कोई मजबूत भूमिका निभा रहा है। ऐसे में राजनीति कर सरकार को गिराने के सपने देखने की रणनीति गलत और सिर्फ गलत ही है।
(लेखक जानेमाने पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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