खरी-खरी
जब-तब गर्दन उठाता , रहता नक्सलवाद।
कहने को पाबंदियाँ , घूम रहे आज़ाद ।।
घूम रहे आज़ाद , बड़े निर्मम हत्यारे ।
ना जाने कितने जवान , अब तक हैं मारे।।
निर्दोषों की जान , गँवाएंगे हम कब तक।सरकारें भी कार्रवाई, करती हैं जब-तब।।
अशोक वशिष्ठ
खरी-खरी
जब-तब गर्दन उठाता , रहता नक्सलवाद।
कहने को पाबंदियाँ , घूम रहे आज़ाद ।।
घूम रहे आज़ाद , बड़े निर्मम हत्यारे ।
ना जाने कितने जवान , अब तक हैं मारे।।
निर्दोषों की जान , गँवाएंगे हम कब तक।सरकारें भी कार्रवाई, करती हैं जब-तब।।
अशोक वशिष्ठ