खरी-खरी
सैयां तड़पें शहर में , मैं तड़पूँ ससुराल।
जो जीए इस हाल में , समझे मेरा हाल।।
मैं होती चिड़िया अगर, उड़ती मस्त मलंग।
क्वारंटाइन ही भले , रहती पिय के संग।।
कोरोना तुझसे करूँ, विनती मैं कर जोड़।
व्यथा विरहणी की समझ, तू जा भारत छोड़।।
अशोक वशिष्ठ