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खरी-खरी-अशोक वशिष्ठ

by zadmin

खरी-खरी
सैयां तड़पें शहर में , मैं तड़पूँ ससुराल।

जो जीए इस हाल में , समझे मेरा हाल।।

मैं होती चिड़िया अगर, उड़ती मस्त मलंग। 

क्वारंटाइन ही भले , रहती पिय के संग।।

कोरोना तुझसे करूँ,  विनती मैं कर जोड़।

व्यथा विरहणी की समझ, तू जा भारत छोड़।।
 


 अशोक वशिष्ठ

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