बंगाल चुनाव में कहीं ऐसा न हो कि ममता को ‘ न माया मिली न राम ‘
हाल ही में गोत्र विवाद और चोटी विवाद के थोड़े समय बाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ममता बनर्जी पर निशाना साधा है। नंदीग्राम में दूसरे दौर के मतदान के दौरान हुए छिटपुट हिंसा पर भी गिरिराज ने तंज कसा था । गिरिराज ने कहा कि प्रधानमंत्री ने सही कहा ममता दीदी दूसरी जगह से भी चुनाव लड़ेंगी। लेकिन जहां जाएंगी वहां हारेंगी। दोबारा चुनाव के लिए दबाव बनाएंगी, पूरे देश के राजनीतिक दलों को बुलाती हैं और तब तक यहां तैयारी चल रही है कि कहां से नामांकन भरा जाए। न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक गिरिराज ने कहा कि हम विकास की चर्चा करते हैं। मुझे अपने धर्म पर, संस्कृति पर गर्व है। ममता बनर्जी पूछना चाहिए, उधर कलमा पढ़ रही थी इधर गोत्र बता रही हैं, कहीं ऐसा न हो कि ममता की वो हालत हो कि न माया मिली न राम।
ममता के दो नावों पर सवारी करने की कथा शुरू हुई जब जिस अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के नेता और जमाएत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी को ममता बनर्जी ने अपने कैबिनेट में शामिल किया गया था । इसके पीछे उनकी मंशा कट्टरपंथी ताकतों को अपने साथ रखने की थी. लेकिन वही सिद्दीकुल्ला चौधरी आजकल गुस्से में चल रहे हैं।उन्होंने खुलेआम ममता को नंदीग्राम भूमि आंदोलन में जमाएत की भूमिका और कड़ी मेहनत को सार्वजनिक रूप से याद दिलाया । ये भी याद दिलाया कि जमाएत ने जो काम किया उनके कैबिनेट में ऐसा करने की हिम्मत कोई भी नहीं कर पाया। मामले को सुलझाने के लिए खुद ममता बनर्जी को सामने आना पड़ा और उन्होंने सिद्दीकुल्ला को लोगों के बीच जाकर अपनी नाराजगी जाहिर करने के बजाए पार्टी के भीतर ही मुद्दों का हल निकालने की सलाह दे डाली ।लेकिन आखिर सिद्दीकुल्ला गुस्सा क्यों हैं? इसका सबसे बड़ा कारण तृणमूल सरकार का अचानक ही हिंदू वोटरों को बहलाने के प्रति फोकस करना है । हिंदुत्व पर भाजपा के आधिपत्य को खत्म करने के लिए ममता बनर्जी बेकरार हैं । यही कारण है कि वो अब हिंदू कार्ड खेलने से परहेज नहीं कर रहीं । लेकिन उनके इसी कदम से कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के नेता नाराज हो गए हैं । हालांकि किसी ने भी सार्वजनिक तौर पर अपना रोष प्रकट नहीं किया था लेकिन राज्य में लगातार सांप्रदायिक भड़क उठे ।
2017 बासिरहाट दंगों के बाद, ममता ने कट्टरपंथियों (अल्पसंख्यक समुदाय) को साफ शब्दों में चेतावनी दी थी कि वो उनके मौन को कमजोरी समझने की गलती न करें । कट्टरपंथियों ने इसी का फायदा उठाया ।जैसे ही ममता बनर्जी को लगा कि किसी सभा में लोगों को उनका झुकाव अल्पसंख्यकों के प्रति दिख रहा है, तभी वो संस्कृत के श्लोक और गायत्री मंत्र का हवाला देना शुरु कर देती ।साथ ही ये भी बताती रही कि उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । मुस्लिमों द्वारा ये बदलाव बर्दाश्त नहीं किया गया । बंगाल में 34 साल के वामपंथी शासन को खत्म करने के लिए, तृणमूल के पक्ष में मुस्लिम वोटों का सिर्फ 7 प्रतिशत वोट गिरा, और सरकार बदल गई. और तृणमूल की सरकार बदलने में ज्यादा टाइम नहीं लगेगा इस बात का खतरा ममता बनर्जी के सिर पर है । उन्हें पता है कि अगर मुस्लिम समुदाय की मांग नहीं मानी गई तो खतरा हो सकता है ।लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय को सबसे बड़ा झटका ममता की इस घोषणा से लगा कि उनकी पार्टी इस साल राम नवमी और हनुमान जयंती मनायेगी । पिछले साल भाजपा ने राम नवमी उत्सव मनाया था । जिसका फायदा उन्हें गैर-बंगाली मतदाताओं के बीच मिला । जब तक टीएमसी इस खेल में आई, तब तक पूरा खेल ही खत्म हो चुका था ।
इस साल अपनी पार्टी की ताकत दिखाने के लिए तृणमूल कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता सड़कों पर उतर आए । लेकिन भगवा पार्टी ने अपनी ताकत दिखाने में कोई कोर कसर नहीं रखी ।जमियत उलेमा-ए-हिंद को टीएमसी द्वारा भाजपा की नकल किए जाना रास नहीं आ रहा था । इसलिए सिद्दीकुल्ला को उनकी पार्टी के अधिकारियों मजबूर किया कि वो सत्तारूढ़ पार्टी को अल्पसंख्यक समुदाय के विचार से अवगत कराएं. उन्हें बताएं कि पार्टी के इस स्टैंड से अल्पसंख्यक समुदाय में बिखराव पैदा होता गया ।
अब दो चरणों में करीब 80 फीसदी वोटिंग के बाद भाजपा और टीएमसी दोनों ही अपने हिसाब से दावे कर रहे हैं । लेकिन, ममता बनर्जी इतने से ही आश्वस्त नजर नही आ रही हैं ।उनकी नजर हिंदू मतदाताओं पर जमी हुई है । ममता बनर्जी मानकर चल रही हैं कि भाजपाविरोधी वोटों का बंटवारा कांग्रेस-वाम दल और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के साथ कहीं कम तो कहीं ज्यादा हो सकता है । इस स्थिति में राज्य के हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए ममता बनर्जी चंडी पाठ से लेकर अपना गोत्र तक बताने लगी । दक्षिणबंगाल की सीटों पर चुनाव आखिरी के चरणों में है । इनमें से कई सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं का खासा प्रभाव है । कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी ने खास रणनीति के तहत ही अभी से अपना गोत्र बता दिया है । जिससे आगे चरणों में उन्हें यह बताने की जरूरत न पड़े. बचे हुए मतदान के चरणों में वह इसे लेकर खतरा मोल नहीं ले सकती हैं ।
ममता बनर्जी ने एक तीर से दो निशाने लगाने की कोशिश की , लेकिन वह सीधे तौर पर भाजपा की रणनीति में फंसती नजर आ रही हैं । जो गलतियां अन्य राज्यों में भाजपा के विरोधी दलों ने की हैं । टीएमसी मुखिया भी उन्ही गलतियों को दोहरा रही हैं । राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव तक ने भाजपा के सामने अपने चुनाव प्रचार में यही गलती की ।भाजपा का सबसे बड़ा हथियार है ध्रुवीकरण. ममता बनर्जी ने अपना गोत्र बताकर इसे और धार दे दी है । भाजपा अपनी रणनीति के तहत ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ ही दलित और वंचित समुदायों की अनदेखी के आरोप लगाती रही है । ध्रुवीकरण के सहारे भाजपा ने हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की भरपूर कोशिश की है. भाजपा की कोशिशों को ‘शांडिल्य’ गोत्र ने पूरी तरह से हावी होने का मौका दे दिया है ।
भाजपा ने पहले चरण के मतदान के बाद से ही ‘परिवर्तन’ और ‘खेला शेष’ का नारा बुलंद कर दिया था । जमीनी स्तर पर भाजपा ने अपने संगठन को काफी मजबूत किया । पहले चरण के मतदान के बाद यह काफी हद तक नजर भी आया । यही बात टीएमसी और ममता बनर्जी के लिए चिंता का कारण बन सकती है । जमीनी स्तर पर ममता बनर्जी को सत्ताविरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है । टीएमसी के स्थानीय कार्यकर्ताओं की तोलाबाजी और कटमनी को भाजपा ने खूब प्रचारित किया है । यह ममता बनर्जी के विरोध में माहौल नहीं बना रहा है, लेकिन टीएमसी के लिए खतरे की घंटी है ।
नंदीग्राम की हॉट सीट पर वाम दलों ने सीपीएम की युवा नेता मीनाक्षी मुखर्जी को चुनाव मैदान में उतार कर ममता बनर्जी को ‘वॉकओवर’ दे दिया था . लेकिन, इससे टीएमसी नेता की मुश्किलें कम होती नहीं दिखी । अल्पसंख्यक वोट निर्णायक जरूर हैं । लेकिन उन्हें जीत हासिल करने के लिए हिंदू वोट भी चाहिए । खेला होबे से मां-माटी-मानुष के नारे पर लौटीं ममता बनर्जी के लिए अब हिंदू मतदाताओं को साधना बहुत ही चुनौती भरा काम होने वाला है । गोत्र के सहारे उन्होंने जिन वोटों को साधने की कोशिश की है । भाजपा का आक्रामक रवैया उसे काफी हद तक बदलने की क्षमता रखता है । देखना रोचक होगा कि आने वाले चरणों के मतदान में ममता बनर्जी का गोत्र उनके कितने काम आता है यां यह होता है कि दुविधा में पड़ी ममता का कहीं यह हाल न हो कि न माया मिली न राम ।
अशोक भाटिया
स्वतंत्र पत्रकार