खरी-खरी
अजब-ग़ज़ब व्यवहार , लगी है करने दिल्ली।
कभी-कभी लगती है , यह खिसियानी बिल्ली।।
चुनी हुई सरकार , काम ज़्यादा न कर दे ।
सौंप रही है ‘एल जी’ को , सत्ता की किल्ली।।
है इतिहास गवाह , बहुत झेला और खेला ।
राजनीति की नित , सरताज रही है दिल्ली।।
अशोक वशिष्ठ