व्यंग्य-कोरोना का सरकारीकरण और कवि कलाकार
डॉ कीर्ति काले
सरकार और कोरोना का गहरा नाता है।ये वायरस वहीं वहीं जाता है जहाँ जहाँ उसे सरकार द्वारा ले जाया जाता है।सरकारी तौर पर किए गए कोरोना वायरस के लेटेस्ट वर्जन के गुप्त अध्ययन से सरकार ने ये महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला है कि कोरोना ना तो जाँबाज़ है, न नशेबाज़ है, न पतंगबाज़ है,न दगाबाज़ है और न ही आन्दोलनबाज है।कोरोना यदि किसी भी तरह का बाज़ है तो केवल और केवल कलाबाज़ है,कविताबाज़ है। जहाँ वो कवियों और कलाकारों की परछाई तक को सूंघकर उनसे आत्मीयतापूर्वक हैलौ करने चला आता है वहीं नेताओं, मंत्रियों और उनके चमचों से बहुत घबराता है। इसीलिए नेता,नारे, रैली ,सभा और बैठक देखते ही उल्टे पाँवों भाग जाता है। कोरोना के कलाबाजपने को देखते हुए हमारी त्रिकालदर्शी सरकार ने अत्यन्त कूटनीति से भरा कदम उठाया है। कवियों कलाकारों और कलाप्रेमियों को अप्रत्यक्ष रूप से कूटने के लिए उनके इकट्ठा होने पर कड़ा प्रतिबंध लगाया है। कवि सम्मेलन और मुशायरों में श्रोताओं की अधिकतम संख्या निर्धारित की है पचास ।सरकार की नीति है अत्यन्त गूढ़ माइक्रोस्कोपिक और झक्कास । सरकार यदि ऐसा न करती तो पता लगाना कठिन होता कि जिसने सारी रात बैठकर कवि सम्मेलन सुना है वो कोरोना या कविता दोनों में से एक्जेक्टली किससे मरा है?कोरोना के नियम कायदे बहुत कड़े हैं।टीवी के सभी चैनल मास्क और, सेनेटाइजर के पीछे हाथ धोकर पड़े हैं।कोरोनाकाल में दूरभाष पर बातचीत का अलग ही है लुत्फकिसी को फोन करो तो उसकी हैलो सुनने से पहले कोरोना से बचाव के ढेरों उपाय सुनने को मिलते हैं मुफ्त।दिल्ली में मास्क न लगाने पर दो हजार रुपए का जुर्माना हैइसलिए नेताओं ने बारी बारी बिहार और बंगाल की चुनावी सभाओं में जा जाकर खुलेआम मन भर के अनुलोम विलोम करने का ठाना है।राजनीतिक रैलियों में न मास्क है,न सेनेटाइजर, न दो गज की दूरी । भीड़ भी है पूरी की पूरी।एक के ऊपर एक लदे जा रहे हैं।सरकार और जनता किसी को नहीं है कोरोना का भय।बस दोनों हाथ उठाकर जोर से बोलते रहिएभारत माता की जय।राजधानी के बाहर का हाल तो है बेहद खासमखास। हजारों आन्दोलनकारी सिंघू बॉर्डर और गाजीपुर बाई पास पर बैठे हैं बिल्कुल पास पास । वहाँ भी न मास्क है न सैनेटाईजर ।पूरी रफ़्तार से घूम रहे हैं ट्रैक्टरों के केनेडियन टायर।उन्हें न कोविड का खतरा है न महामारी का खौफ।कोरोना को भी कत्तेई नहीं है वहाँ जाने का शौक। आन्दोलन दिनो दिन हो रहा है हिट।बन रही है सफलता की नित नई टूल किट!।खूब माल मलीदा बँट रहा है।दिन रात लंगर छँट रहा है।ध्यान रहेये आन्दोलन कोरोना को क्या सरकार तक को नहीं मान रहा इसलिए कोरोना वायरस भी आन्दोलनकारियों को नहीं जान रहा। दोनों में गुपचुप समझौता है। देखते हैं आगे आगे क्या होता है।धर्म की विजय हो,अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो कहकर हर हर गंगे करते हुए लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई।ऐसा करते हुए उन्हें कोरोना की याद तक नहीं आई।ये मामला नितांत धार्मिक है। अत्यन्त संवेदनशील है, मार्मिक है। भगवान और भक्त का अद्भुत है नाता।इसलिए इसमें सरकार द्वारा कोरोना का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाता।सरकार और प्रशासनिक अमला तन मन धन से पुण्य कमाने में लगा है।कोरोना वायरस यहाँ से भी नंगे पाँव भगा है।अब चलते हैं कवि सम्मेलन और मुशायरे में।हाँ ये ही तो आते हैं पूरी तरह कोरोना के दायरे में।कोरोना वायरस को पसन्द हैं गीत ग़ज़ल छन्द। सरकार ये जानती है इसीलिए तो लगाया है इन पर प्रतिबन्ध।अब न गीत गाए जाते हैं न ग़ज़लें चहकती हैं।न आह वाह होती है न तालियाँ महकती हैं।आयोजक हैरान हैं,कवि परेशान हैं। निराला भवन और ग़ालिब सभागार वीरान पड़े हैं।वहाँ के कर्मचारियों के सामने आजीविका के संकट मुँह बाए खड़े हैं। उस पर सरकारी आँकड़े कवि सम्मेलन और मुशायरे नहीं होने देने पर अड़े हैं। कैसा दौर है।मुँह से कोसों दूर कौर है।कवियों ,कलाकारों और कला प्रेमियों को कोरोना से बचाने के लिए सरकार की व्यवस्था एकदम चाक चौबंद है।नीति काबिले गौर है।कवि कोरोना से नहीं मरना चाहिए।भूख से मर जाए तो उसकी बात और है।डॉ कीर्ति काले9868269259